Wednesday, August 19, 2009

जसवंत को निगला जिन्न

जिन्ना का जिन्न जसवंत को निगल गया। कहां तो बीजेपी ने उन्हें हनुमान का दर्जा दिया था, कहां वो रावण बना दिए गए। जसवंत 2001 में आउटस्टैंडिंग पार्लियामेंटेरियन अवॉर्ड से नवाजे गए थे। एनडीए सरकार में विदेश मंत्री, वित्त मंत्री औऱ जॉर्ज के तहलका कांड में फंसने के बाद कुछ समय के लिए रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन, ये तमाम तमगे उनकी रक्षा करने में नाकाम साबित हुए। कहने वाले इसे बीजेपी में बदलाव की शुरुआत मान रहे हैं। लेकिन, ज़रा इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करें कि जब आडवाणी को जिन्ना प्रेम पर पार्टी से नहीं निकाला गया तो जसवंत को क्यों ? दरअसल, आडवाणी एक तो बीजेपी में जसवंत की तुलना में कहीं ज्यादा कद्दावर नेता हैं और दूसरे ये कि चाहे पार्टी का कितना भी बुरा दौर क्यों नहीं चल रहा हो, इसे सत्ता तक लाने में आडवाणी की रथ यात्रा ही निर्णायक रही थी। इसके अलावा सच ये भी है कि मीठे-कड़वे रिश्तों के बावजूद आडवाणी संघ से कभी उतने दूर नहीं गए कि वापस नहीं लौट सकें। लेकिन, जहां तक जसवंत का सवाल है, शुरू से ही वो संघ से दूर रहे या यूं कहें कि बीजेपी में होते हुए भी कभी संघ से उनकी करीबी नहीं रही। लिहाजा संघ का चाबुक उन्हें पहली ही वार में चित कर गया। याद करें किस्सा उमा भारती का...आडवाणी को खुलेआम ललकारा, सार्वजनिक तौर पर बखेड़ा खड़ा किया, पार्टी अनुशासन को तोड़ा और सस्पेंड की गईं...सस्पेंड किए जाने के कुछ महीने बाद फिर बीजेपी ने निलंबन वापस लिया...ये अलग बात है कि फिर उन्होंने बगावत कर दी और इसके बाद उन्हें विदा कर दिया गया। वैसे जसवंत ने तीन साल पहले भी किताब लिखी थी, बवाल तब भी मचा था..जसवंत ने जिक्र किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय से अमेरिकी एजेंसियों को ख़बरें लीक की जाती हैं। निशाने पर थे पीवीनरसिम्हा राव...इसलिए बीजेपी को नागवार गुजरने जैसा कुछ नहीं लगा। लेकिन, इस बार तो जसवंत पर कार्रवाई से बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस संतुष्ट नज़र आ रही है। हो भी क्यों ना...नेहरू पर उंगली उठाने पर जो बवाल कांग्रेस को मचाना था, वो काम खुद बीजेपी ने ही जिन्ना की तारीफ की सज़ा देकर कर दी।
आपका
परम

Thursday, August 13, 2009

किस-किस का हो वध?

सबसे पहले तो आप सभी को जन्माष्टमी की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं...इस बार महाराष्ट्र में तो स्वाइन फ्लू ने इस त्योहार का रंग फीका कर दिया, लेकिन बाक़ी जगह सबकुछ हर साल की ही तरह होगा। कुछ मंदिरों में झांकी भी लगाई गई है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को कंस की जगह स्वाइन फ्लू का वध करते दिखाया गया है। एक चैनल पर चल भी रहा था..इस राक्षस का वध करो...दिल में एक सवाल उठा..किस-किस का वध करेंगे भगवान..यहां तो राक्षसों की पूरी फौज़ तैनात है। सीरियल में दिखा था..भयानक दिखने वाले राक्षस-राक्षसी तरह-तरह के वेश में आते थे और कृष्ण उन्हें मारकर उनका उद्धार करते थे। लेकिन, अब तो इन राक्षसों को पहचानना भी मुश्किल है। कोई ऑटो चालक के वेश में आता है, महिला सवारियां बैठाता है और बलात्कार के बाद सारा सामान लूटकर फरार हो जाता है। कोई गैस सिलेंडर चेक करने वाला बनकर आता है, घर का सारा माल समेटता है और घर में मौजूद लोगों को ज़ख्मी करके चलते बनता है। कोई नौकर के वेश में होता है, खाता है-पीता है, तनख्वाह लेता है और मौका मिलने पर घर में मौजूद लोगों की जान लेकर सामान बटोर लेता है। इनसे भी बच गए तो उनसे कैसे बचेंगे, जो अपने बनकर आते हैं और दुश्मनों को मात कर जाते हैं। हाल ही में दिल्ली में एक ऐसा ही वाकया सामने आया। एक बुजुर्ग ने फिरौती के लिए अपने ही नाती को अगवा कर लिया। और बच्चे के मामा ने इसमें अपने पिता का साथ दिया था। यानी नाना और मामा भेष बदलकर अगवा करने वाले राक्षस बन गए। अब बेचारा बच्चा कृष्ण तो था नहीं और ना ही ये सतयुग ही था...फिर भी बच गया तो इसे कृष्णलीला ही मानिए क्योंकि दिल्ली में ही दोस्तों ने जिस तरह रिभु को अगवा भी किया, उसके घरवालों से लाखों की फिरौती भी वसूली और फिर मारकर भी फेंक दिया..उससे तो इन राक्षसों से रहम की उम्मीद भी नहीं कर सकते। हां, एक अच्छी ख़बर जन्माष्टमी से ठीक दो दिन पहले ज़रूर आई, जब बिहार की एक अदालत ने एक पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के ग्यारह साल बाद कई बाहुबलियों को कानून की ताकत दिखा दी। सूरजभान, राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला जैसे बाहुबलियों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है। वैसे बृजबिहारी भी दूध के धुले नहीं थे। दुबे हत्याकांड में उनका ही हाथ था और मज़ेदार बात तो ये है कि जिस दुबे को मारने में बृजबिहारी का हाथ था, वो भी गैंगस्टरों के सरगना बताए जाते हैं..राजनीति के राक्षसों में उनका भी नाम शुमार है। खैर...भगवान वध करें, इस जन्माष्टमी पर...भ्रष्टाचार के राक्षस का, महंगाई के राक्षस का, मंदी के राक्षस का..इनसानों के भेष में छिपे हर राक्षस का और हां स्वाइन फ्लू के राक्षस का भी...
बहुत-बहुत बधाई
आपका
परम

Tuesday, August 11, 2009

ये बाबा...वो बाबा

साधु-संतों का हमारे देश में बड़ा मान है। जहां जाते हैं, लोग पांव छू-छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उनकी वाणी सुनकर जीवन को धन्य समझते हैं। स्वाइन फ्लू की चपेट में धीरे-धीरे आ रहे अपने देश में भी जब बाबा रामदेव अचानक रामवाण के साथ टीवी न्यूज़ चैनलों पर अवतरित हुए तो उन्हें सुनने के लिए दर्शकों ने पूरा धैर्य बनाए रखा।चैनल बदल-बदल कर देखा और सुना। इसमें कोई हर्ज भी नहीं क्योंकि अगर कोई सुझाव मुफ्त में मिले तो उसे आजमाने में हर्ज ही क्या है। अगर गुलैठी और तुलसी जैसी सुलभ चीजों से इस बीमारी से बचा जा सकता है तो फिर क्यों आयातित टैमीफ्लू के चक्कर में देर करके जान गंवाई जाए। बाबा ने मुद्दा उठाया कि जो देश हैजा, चेचक, प्लेग जैसी महामारियों से पहले भी कई बार सामना कर चुका है, वो स्वाइन फ्लू को लेकर इस बार इतना दहशत में क्यों नज़र आ रहा है ? बेबसी नज़र आ रही है चारों ओर, बेबस नज़र आ रही है सरकार भी...पहले तो ढिलाई बरती और बाहर से बीमारी को एयरपोर्ट के रास्ते देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया और अब सांप निकलने के बाद लकीर पीट रही है। खैर, जो हुआ, सो हुआ...अब तो जो सामने है, उससे निपटना है, निपट ही रहे हैं वो तमाम लोग, जो महंगाई से अधमरे होने के बाद सूखे को लेकर औऱ मरे जा रहे हैं। और रही-सही जान स्वाइन फ्लू ना हो जाए, इस आशंका से निकली जा रही है। शायद बाबा की वाणी हम अधमरों, फिक्रमंद लोगों में कुछ नई जान फूंके, नई उम्मीद दिखाए...वैसे स्वाइन फ्लू, मंदी, महंगाई, सूखे से कुछ बाबा लोग निश्चिंत भी रहते हैं। नमूना दिखा, उड़ीसा में...नागपंचमी का दिन था। पुरी के साक्षीगोपाल मंदिर में शिल्पा शेट्टी और शमिता शेट्टी पहंची थी। सठियाये पुजारी बाबा को शिल्पा की सूरत में शायद मेनका, उर्वशी नज़र आई और उन्होंने शिल्पा के गाल पर चुंबन जड़ दिया। शिल्पा सकपकाई, सकपकाए वो तमाम लोग, जो वहां मौजूद थे। बाबा का ये सांसारिक 'छिछोरा' रूप किसी ने देखा नहीं था। अगर बाबा पहले भी दूसरे भक्तों, यहां तक कि बच्चों को भी इसी तरह आशीर्वाद में चुंबन देते तो बात और थी। लेकिन, उनकी हरकतें कुछ और बयां कर रही थीं। शायद यहां लिखना ठीक भी नहीं...वैसे media khabar.com पर हाल ही में टीवी पत्रकार देवेंद्र शर्मा जी ने इस बारे में विस्तार से लिखा भी था। मैंने पहली बार वहीं तस्वीर भी देखी थी। आपने नहीं देखी हो तो एक बार वो तस्वीर ज़रूर देखिए, बाबा के चेहरे से पूरी कहानी समझ जाएंगे।
अरसे बाद आपसे बात करने का मौका मिला है..उम्मीद है एक बार फिर से लगातार बात होती रहेगी...पहले की ही तरह..
आपका
परम