जिन्ना का जिन्न जसवंत को निगल गया। कहां तो बीजेपी ने उन्हें हनुमान का दर्जा दिया था, कहां वो रावण बना दिए गए। जसवंत 2001 में आउटस्टैंडिंग पार्लियामेंटेरियन अवॉर्ड से नवाजे गए थे। एनडीए सरकार में विदेश मंत्री, वित्त मंत्री औऱ जॉर्ज के तहलका कांड में फंसने के बाद कुछ समय के लिए रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन, ये तमाम तमगे उनकी रक्षा करने में नाकाम साबित हुए। कहने वाले इसे बीजेपी में बदलाव की शुरुआत मान रहे हैं। लेकिन, ज़रा इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करें कि जब आडवाणी को जिन्ना प्रेम पर पार्टी से नहीं निकाला गया तो जसवंत को क्यों ? दरअसल, आडवाणी एक तो बीजेपी में जसवंत की तुलना में कहीं ज्यादा कद्दावर नेता हैं और दूसरे ये कि चाहे पार्टी का कितना भी बुरा दौर क्यों नहीं चल रहा हो, इसे सत्ता तक लाने में आडवाणी की रथ यात्रा ही निर्णायक रही थी। इसके अलावा सच ये भी है कि मीठे-कड़वे रिश्तों के बावजूद आडवाणी संघ से कभी उतने दूर नहीं गए कि वापस नहीं लौट सकें। लेकिन, जहां तक जसवंत का सवाल है, शुरू से ही वो संघ से दूर रहे या यूं कहें कि बीजेपी में होते हुए भी कभी संघ से उनकी करीबी नहीं रही। लिहाजा संघ का चाबुक उन्हें पहली ही वार में चित कर गया। याद करें किस्सा उमा भारती का...आडवाणी को खुलेआम ललकारा, सार्वजनिक तौर पर बखेड़ा खड़ा किया, पार्टी अनुशासन को तोड़ा और सस्पेंड की गईं...सस्पेंड किए जाने के कुछ महीने बाद फिर बीजेपी ने निलंबन वापस लिया...ये अलग बात है कि फिर उन्होंने बगावत कर दी और इसके बाद उन्हें विदा कर दिया गया। वैसे जसवंत ने तीन साल पहले भी किताब लिखी थी, बवाल तब भी मचा था..जसवंत ने जिक्र किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय से अमेरिकी एजेंसियों को ख़बरें लीक की जाती हैं। निशाने पर थे पीवीनरसिम्हा राव...इसलिए बीजेपी को नागवार गुजरने जैसा कुछ नहीं लगा। लेकिन, इस बार तो जसवंत पर कार्रवाई से बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस संतुष्ट नज़र आ रही है। हो भी क्यों ना...नेहरू पर उंगली उठाने पर जो बवाल कांग्रेस को मचाना था, वो काम खुद बीजेपी ने ही जिन्ना की तारीफ की सज़ा देकर कर दी।
आपका
परम
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1 comment:
paramendera ji
एक बहुत पुराना गीत था मंडुए तले गरीब के दो फूल खिल रहे. ऐसी ही कुछ कहानी जिन्ना के गमले में दो फूल खिलने की है. एक फूल खिलाया था आडवाणी ने 4 जून 2005 को पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें सरोजिनी नायडू के हवाले से हिन्दू-मुस्लिम एकता का महान राजदूत करार देकर. वहीँ दूसरा फूल खिलाया जसवंत सिंह ने 17 अगस्त 2009 को अपनी किताब में जिन्ना के कसीदे पढ़कर. जसवंत के जिन्ना नायक है और नेहरु-पटेल खलनायक. आडवाणी संघ के तीर सहने के बाद भी पार्टी में नंबर एक बने रहे. वहीँ संघ को खुश रखने के लिए जसवंत पर आँख झपकते ही अनुशासन का डंडा चला दिया गया. कभी party with difference का नारा देने वाली बीजेपी आज party with differences बन चुकी है. इन दोहरे मानदंडो में ही बीजेपी की हर समस्या छिपी है या यूं कहिये समाधान भी.
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