Friday, September 23, 2016

साथियों,
पांच साल बाद अपने इस ब्लॉग पर एक बार फिर से आपका स्वागत करता हूं। इस बीच दुनिया बदल गई और ब्लॉग पर अपनी बात कहने की आदत भी क्योंकि फेसबुक की चकाचौंध ने ऐसा खींचा कि उसी में उलझ गए हम भी। मैंने अपने अनुभव से पाया कि जिस तरह ब्लॉग में आप अपनी कोई भी पुरानी रचना बड़ी आसानी से तलाश सकते हैं, वो सुविधा फेसबुक में नहीं है। हां तस्वीरें वहां आप भी तलाश सकते हैं, लेकिन रचना पुरानी होने के बाद तलाशना बहुत वक्त लेता है। खैर, पहचान मेरी कुछ खास है नहीं, जो आपसे साझा कर सकूं। बस एक आम आदमी हूं, जो पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। ईटीवी, सहारा समय, ज़ी न्यूज़, आजतक, जेवीजी टाइम्स, स्वतंत्र वार्ता जैसे कुछ टीवी न्यूज़ चैनल्स और अखबारों में काम करने का अनुभव है और अभी भी वक्त मिलते ही जो लिख पाता हूं, लिखता हूं। अपने फेसबुक प्रोफाइल और फेसबुक पेज दोनों का लिंक आपसे साझा कर रहा हूं, ताकि अगर यहां नहीं तो वहां अपनी मुलाकात, बात होती रहे। धन्यवाद
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#सुशासन_का_जनाजा_1

#सुप्रभात.. #नीतीश_कुमार के #सुशासन_का_जनाजा निकलने के अवसर पर आपका स्वागत है। बिहार में बहार है, अपराधियों के अच्छे दिन चल रहे हैं और आज का दिन तो वाकई बहुत ही बढ़िया है। शनिवार के दिन सीवान और बिहार के शनिदेव 11 साल बाद जेल से बाहर पधारे हैं। राजद के नेता-कार्यकर्ता पहले से ही भागलपुर पहुंचे हुए थे। सारे होटल बीती रात ही बुक थे, सीवान की राजद नेता लीलावती गिरी की अगुवाई में सैंकड़ों कार्यकर्ता प्राचीन अंग राज्य की राजधानी में लिखे गए इस स्वर्णिम इतिहास का गवाह बनने गाड़ियों के काफिले से आए थे। शान के साथ निकले सुशासन के जनाजे को देखकर छुटभैया अपराधियों ने शहाबुद्दीन जैसा बड़ा नाम बनने की प्रेरणा ली। लालू और नीतीश में एक अंतर है, लालू अपराधियों को सीना ठोककर संरक्षण देते हैं और नीतीश कंबल ओढ़कर घी पीते हैं। नीतीश ने 2005 में शहाबुद्दीन को जेल भिजवाया था, तबसे वो जेल में ही था, लेकिन लालू ने महागठबंधन की सरकार बनने के महज नौ महीने के भीतर रिहाई का रास्ता साफ करवा दिया। कहावत है बांझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा..लालू खुद जेल में रहे हैं तो शहाबुद्दीन की पीड़ा को नीतीश भला क्या समझेंगे, जितना लालू समझ सकते हैं। तभी तो शहाबुद्दीन ने निकलते ही कहा-असली नेता लालू हैं, नीतीश तो परिस्थितियों के सीएम हैं। आख़िर यूं ही नहीं बिहार में माय लालूजी के प्रति अपार स्नेह रखता है। दो भाइयों की हत्या हुई थी, तेजाब स्नान कराया गया था। तीसरा चश्मदीद था, जो ज़िंदा होता तो केस ज़िंदा होता, इसलिए उसे भी मार डाला गया। वैसे तो हत्या, अपहरण समेत पांच दर्जन से ज्यादा संगीन अपराध शहाबुद्दीन पर है, लेकिन जेल इसी मामले में गया था। इसी साल फरवरी में हाईकोर्ट ने 6 महीने में ट्रायल पूरा कराने को कहा था, लालूजी के मनमुताबिक नीतीश जी ने ऐसी व्यवस्था की कि शहाबुद्दीन के खिलाफ केस जितना कमजोर हो सकता था, उससे भी ज्यादा कमजोर कर दिया गया और अदालत ने वही फैसला सुनाया कि अभियोजन आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा इसलिए रिहाई...तभी मैंने कहा कि आज सुशासन का जनाजा है, जिसे नीतीश ने खुद अपने हाथों से तैयार किया है हालांकि इसे अदालत का आदेश बताया जाएगा, जिसमें सरकार की कहीं कोई भूमिका नहीं होगी। नीतीश के मंत्री जेल में जाकर शहाबुद्दीन के साथ दावत कर आए क्योंकि वो राजद कोटे के थे और नीतीश सुशासन का गुब्बारा फूटते देखते रहे, हिम्मत थी कि अपने ही अधीन मंत्री पर कार्रवाई करते? मैं तो नीतीश का जबर्दस्त समर्थक हूं। कहां होते हैं ऐसे महान राजनेता? उन्होंने पूरे संयम और साहस के साथ विपरीत हालात का सामना किया और सिद्धांतों को तिलांजलि देकर कानूनराज कायम करने की वचनबद्धता को हाल की बाढ़ में बहा डाला। आसान नहीं होता अपनी अच्छी-ख़ासी छवि को अपने ही हाथों बर्बाद करना, नीतीश जी में ये असीम शक्ति है, बिहार की जनता उन्हें ऐसी शक्ति से और लैस करे ताकि बिहार के अपराधी देश-दुनिया में अव्वल बनें। अनंत सिंह बेचारा तिलमिला रहा है कि लालू जी ने शहाबुद्दीन से दोस्ती निभाई जबकि नीतीश जी बेवफा बन गए। कहां तो नीतीश जी हाथ जोड़कर प्रणाम करने आते थे, सुनील पांडे और अनंत मिलकर नीतीश के सत्तासंरक्षित हाईक्लास अपराधियों के सिरमौर हुआ करते थे, अब जेल में सड़ रहे हैं। मनु महाराज ने ऐसी धारा फिट किया है कि कम से कम एक साल तो जमानत मिलने से रही..खैर..लालू-नीतीश की जोड़ी शहाबुद्दीन को शक्ति बख्शे, बिहार को गर्व है शहाबुद्दीन पर, डॉन हो तो ऐसा, दाऊद की तरह डरपोक नहीं है ये बिहारी शेर कि घर का एड्रेस बताने में भी डरता है, यहां सीवान का चप्पा-चप्पा पता जानता है। जिन लोगों के हाथों में कलम और भुजाएं फड़फड़ाएं वो जेएनयू वाले चंद्रशेखर, मौजूदा सांसद ओमप्रकाश यादव के मीडिया प्रभारी श्रीकांत भारतीय, पत्रकार राजदेव रंजन को याद कर लें, मिजाज ठंडा हो जाएगा, तो मिलते हैं फिर, आपका दिन शुभ हो।

10 सितंबर 2016 को https://www.facebook.com/paramendra.mohan/posts/1135905986495882 पर पोस्ट इस आलेख पर 113 लाइक्सक, 27 शेयर्स और 14 टिप्पणियों ने मुझे चौंका दिया था। मेरे पोस्ट्स पर उन दिनों औसतन 30-40 लाइक्स आया करते थे। ये गुस्सा था नीतीश कुमार के खिलाफ आम लोगों का, मैंने इसी सीरीज़ में चार और आलेख लिखे, और आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मेरी मित्रता सूची से भी ज्यादा लोगों ने मेरे पोस्ट्स पर रिएक्ट किया।

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_2

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_2
#सुप्रभात। एक फिल्मी डॉयलॉग याद आ रहा है, साला एक मच्छड़ आदमी को हिजड़ा बना देता है, नीतीश कुमार पर नया डॉयलॉग बन सकता है, एक कुर्सी आदमी को थेथर बना देती है। बिहार में महागठबंधन के एक दिग्गज नेता हैं, हालांकि इस बार अप्रत्याशित रूप से चुनाव हार गए, उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान जब लोग गालियां देते थे, बेइज्जत करते थे तो गहरे श्याम वर्ण पर सफेद बत्तीसी चमक उठती थी, दोनों हाथ जोड़े मुस्कुराते रहते थे, एक बार मैंने पूछा कि आपको ये अपमान बुरा नहीं लगता तो बोले-नहीं, इससे खुशी होती है क्योंकि जीत पक्की हो जाती है, जनता सोचती है कि कितना भला नेता है, मुंह पर भी गाली देने पर बेचारा कुछ नहीं बोलता! ये फॉर्मूला कामयाब रहा और वो कई-कई बार विधायक रहे, मंत्री बने। ये नीतीश जी की पार्टी के ही नेता हैं। सीधी सी बात है, राजनीति में सत्ता अहम है, अपमान-सम्मान-नीति-सिद्धांत-विकास-विनाश सब मोह-माया है। नीतीश की फजीहत जारी है और वो अदभुत बेशर्मी के साथ इसे झेल भी रहे हैं। कल नारे लगे-जेल के ताले टूट गए, सरकार के साहेब छूट गए और साहेब ने भागलपुर में ‘परिस्थितियों के सीएम’ कहकर नीतीश कुमार को औकात दिखाई तो उनका काफिला जब समस्तीपुर-मुज़फ्फरपुर सीमा के चिकनौटा-मदरसा चौक पर पहुंचा तो शराबबंदी पर भी लताड़ लगाई-‘शराबबंदी काला कानून है, बेटा पिये और बाप को सज़ा हो, ये कैसा कानून है? कोई फाइव स्टार होटल नहीं खुल सकता क्योंकि बियर बार ही नहीं हो सकता। शराब से ज्यादा हानिकारक सिगरेट है, उसे क्यों नहीं बंद किया जा रहा? कानून के बदले जागरुकता से शराबबंदी होता तो बेहतर होता।‘ नीतीश ने साहेब का ज्ञान कितना ग्रहण किया, ये तो वही जानें, लेकिन बिहार की जनता देख रही है कि लालू तो लालू, शहाबुद्दीन तक की नज़र में सीएम की क्या औकात और अहमियत है? लालूजी चाहें तो शहाबुद्दीन का मुंह बंद करवा सकते हैं, लेकिन चाहेंगे तभी जब नीतीश की फजीहत पूरी हो जाएगी क्योंकि लगाम कब ढीली रखनी है और कब कसनी है, ये लालूजी से बेहतर कोई नहीं जानता। नीतीश की राजनीति हमेशा से सत्ताकेंद्रित रही है, इसके लिए वो जिस थाली में खाते हैं, उसमें छेद भी करते रहे हैं। दूसरी ओर, लालू डंके की चोट पर दोस्ती-दुश्मनी दोनों निभाते हैं। बिहार और हरियाणा के एक पूर्व राज्यपाल शफी कुरैशी हाल में दिवंगत हो गए, हरियाणा में तीन दिन राजकीय शोक रहा, बिहार में तीन घंटे का भी नहीं, जबकि हरियाणा में एक ही बार राज्यपाल थे, बिहार में दो-दो बार..ऐसा शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने राज्यपाल रहते चारा घोटाले में लालू के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी दी थी और लालू नहीं चाहते थे तो नीतीश की क्या औकात कि मुख्यमंत्री होते हुए भी राज्यपाल के निधन पर औपचारिक शोक की घोषणा कर दें? नीतीश समर्थक भी अपने नेता की दुर्गति और लालू के आगे शर्मनाक समर्पण से आहत हैं। नमो विरोधी तो नीतीश को पीएम का विकल्प तक मान बैठे थे। नीतीश का राजनीतिक एजेंडा शराबबंदी पूरे देश की महिलाओं और पुरुषों के भी एक बड़े वर्ग को आकर्षित करने वाला एजेंडा भी है, लेकिन क्या देश नमो के एक ऐसे विकल्प को अपना समर्थन दे सकता है, जिसने सिर्फ सत्ता में रहने के लिए सिद्धांतों की तिलांजलि दे दी, जेलयाफ्ता लालू के चरणपूजक हों और 63 संगीन मामलों के कुख्यात शहाबुद्दीन को सत्तासंरक्षण देने वाला सीएम हो? जवाब है नहीं..और इसीलिए मुझे लगता है कि शहाबुद्दीन की रिहाई नीतीश के राजनीतिक करियर के सबसे अहम पड़ाव पर सबसे बड़ी चूक है। नीतीश ये भूल गए कि वो लालू नहीं हैं, नीतीश हैं, जिनकी पहचान है सुशासन और विकास। लालू अपराधियों के संरक्षक के तौर पर जाने जाते हैं और यही उनका आधार भी है। मुस्लिमों और यादवों के अपराधी तत्वों का संरक्षण लालू की ताकत है और लालू ने कभी इसे छिपाने की कोशिश भी नहीं की। दूसरी ओर, नीतीश ने अपराधियों को संरक्षण देने की लालू की नीति बरकरार रखते हुए भी अपनी एक ऐसी छवि बनाई जो सुशासन का प्रतीक थी, लेकिन शहाबुद्दीन प्रकरण ने ये साबित कर दिया कि नीतीश अब अपनी ही छाया हैं और बिहार में जो चल रहा है वो सब बस लालू की माया है। बिहार में अगर महागठबंधन की सत्ता न होती तो अपराध कम हो जाते ये गारंटी तो भाजपा भी नहीं दे सकती क्योंकि मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार होते हुए भी महिलाओं के खिलाफ अपराध सबसे ज्यादा हो ही रहे हैं, लेकिन ये गारंटी कोई भी दे सकता है कि बिहार में अगर राजद सरकार में न होता तो अपराध कम हो जाते। चलिए मिलते हैं फिर, आपका दिन शुभ हो।

11 सितंबर को मेरे फेसबुक प्रोफाइल https://www.facebook.com/paramendra.mohan/posts/1135905986495882 पर पोस्ट इस अंक पर 126 लाइक्स, 26 शेयर्स, 9 कमेंट्स आए

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_3

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_3
#सुप्रभात..नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वो मैंडेट के मुताबिक काम करेंगे न कि आलोचनाओं के मुताबिक। अब कौन उन्हें समझाए कि 243 विधायकों वाली विधानसभा में महज 71 यानी एक तिहाई से भी कम विधायक वाली पार्टी के मुख्यमंत्री को जनादेश की बात कहां से शोभा देती है? कोई नेता अपनी करतूतों को लेकर सवालों में घिरता है तो जनादेश की दुहाई देने लगता है। नीतीश जी ये तो बताएं कि बिहार के जनादेश में ये कहां लिखा था कि सरकार अपराधियों को रिहा कराएगी? चंदा बाबू (जिनके दो बेटों को तेजाब स्नान कराया गया, तीसरे को गोली मारी गई) का बयान है-शहाबुद्दीन की रिहाई हमारे लिए मौत की सज़ा से कम नहीं है, क्या जनादेश में नागरिकों की सुरक्षा नहीं होती? वैसे नीतीश ने शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर पूरी तैयारी कर रखी थी, बिल्कुल तय स्क्रिप्ट के मुताबिक शहाबुद्दीन ने नीतीश को परिस्थितियों का सीएम बताया, शराबबंदी कानून पर घेरा, ताकि नीतीश अपने वोटबैंक और समर्थकों को ये संदेश दे सकें कि देखिए मेरे खिलाफ कैसे दुष्प्रचार हो रहा है कि मैंने शहाबुद्दीन को केस कमज़ोर करके छुड़वाया। मैंने तो उसे जेल भिजवाया था, अब अगर अदालत ने ही छोड़ दिया तो मैं क्या कर सकता हूं? क्या हम जज हैं? हम छुड़वाए होते तो क्या वो जेल से छूटते ही हमको ही गरियाने लगता? अब बिहार की जनता की समझ का अंदाज़ा तो दुनिया जानती ही है, इसलिए सुशासन बाबू का एजेंडा सेट है। कौन पूछ सकता है उनसे कि एक मामले में चलिए वो छूट भी गया, क्या 63 में से एक भी मामले में उसे फिर से जेल नहीं भेजा जा सकता? चलिए कोई मामले में नहीं भेजा जा सकता क्या कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है कि अगर किसी के बाहर रहने से नागरिकों की सुरक्षा को ख़तरा है तो प्रिवेंशन के तहत उसे जेल भेजा सकता है? मुज़फ्फरपुर में बिना टोल टैक्स भरे पूरा काफिला निकल गया, क्या ये पूछताछ करने लायक भी मामला नहीं बनता? नीतीश जी किसे मूर्ख बना रहे हैं आप? ठीक है कि आपने और आपके बड़े भैया ने बिहार को बीसवीं सदी में ही रोक रखा है, जिसके पास न रोटी है, न रोजगार है, न शिक्षा है, न समझ है, न सोच है, बस जाति की राजनीति है, लेकिन ये क्यों भूल जाते हैं कि ये इक्कीसवीं सदी है। हैरत मुझे नीतीश या लालू या बिहार की जनता पर नहीं है, हैरत है वामपंथी विचारकों पर, जो शहाबुद्दीन की रिहाई पर भी गेस्ट अपीयरेंस की तरह कलम चलाकर कट लिए! भले ही केरल-बंगाल और जेएनयू छोड़कर इस विचारधारा का कहीं अता-पता नहीं है, लेकिन यही कामरेड हर दिन संघी-मोदी-भाजपा का राग अलापकर खुद को ज़िंदा तो रखे हुए हैं ही। जेएनयू में छात्रसंघ चुनाव के नतीजों को देश का मूड तक बता डालने वाले मेरे मित्रों, अपने कामरेड चंद्रशेखर को तो याद कर लेते? देश के किसी कोने में किसी दलित की पिटाई हो जाए तो वो मुद्दा है क्योंकि मोदी को घेरना है, बदबू गुजरात की जैसे अभियान को हवा दी जाती है, लेकिन खुलेआम तेज़ाब स्नान कराने वाले की रिहाई पर आपको सड़ चुके सुशासन और तेज़ाब में जल चुके मानव शरीरों की बदबू नहीं महसूस हो रही! कुछ मुस्लिम मित्रों की प्रतिक्रियाएं देखीं, उनकी नज़र में जो लोग शहाबुद्दीन की रिहाई का विरोध कर रहे हैं, वो 'भक्त' हैं! क्या कहेंगे इन्हें? कौन समझा जा सकता है इन्हें? तभी तो इनकी नीयति यही है, इनकी सोच सड़ चुकी है और इसी वजह से बिहार सड़ चुका है। खैर, मिलते हैं फिर, आपका दिन शुभ हो
12 सितंबर को मेरे फेसबुक प्रोफाइल https://www.facebook.com/paramendra.mohan पर पोस्ट इस अंक पर 611 लाइक्स, 343 शेयर्स और 22 कमेंट्स आए थे।

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_4

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_4
#सुप्रभात..सबसे पहले सभी मित्रों का आभार, जिन्होंने कल की मेरी पोस्ट सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_3 को 521 लाइक्स, 314 शेयर्स और 20 कमेंट्स दिए। इसी सीरीज़ के पहले पार्ट पर 71 लाइक्स, 11 शेयर्स और 13 कमेंट्स और दूसरे पर 67 लाइक्स, 13 शेयर्स और 8 कमेंट्स आए थे। ये अप्रत्याशित है क्योंकि मेरे फ्रेंडलिस्ट में कुल जमा 653 मित्र हैं, जिनमें से मुश्किल से 100-50 सक्रिय हैं। सवाल ये कि अचानक इतने लोगों की प्रतिक्रिया क्यों मिली? जवाब ये कि ये उस आक्रोश की अभिव्यक्ति है, जो एक दुर्दांत अपराधी को खुलेआम दिए जा रहे सत्ता संरक्षण के ख़िलाफ़ उभरी है। लालू यादव अगर मुख्यमंत्री होते तो न किसी को शहाबुद्दीन की रिहाई पर आश्चर्य होता, न किसी को गुस्सा आता क्योंकि तब ये स्वाभाविक माना जाता, लेकिन गुस्सा इसीलिए है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश हैं। बिहार में पिछले साल विधानसभा चुनाव हुए थे, ये अंदेशा जताया गया था कि अगर लालू-नीतीश की सरकार बनी तो बिहार फिर से 2005 की स्थिति में लौट सकता है। नीतीश जी..आपको याद है न आपने बिहार की जनता को भरोसा दिया था कि जंगलराज की वापसी नहीं होगी, मैं हूं ना। आज नीतीश जी ईमानदारी से बताएं कि वो कहां हैं? वो अगर हैं तो फिर शहाबुद्दीन क्यों खुलेआम घूम रहा है? यही सवाल मैं उन तमाम मीडिया मित्रों और मोदी विरोधी बुद्धिजीवियों से भी पूछता हूं-2015 के नवंबर में आप लोगों ने बिहार में महागठबंधन की जीत का जमकर जश्न मनाया था कि दिल्ली के बाद बिहार ने मोदी का विजयरथ रोक दिया, अब बिहार का विकासरथ थमा हुआ है और अपराधरथ कानूनराज को रौंद रहा है, तो आइए आप सबको निमंत्रण है पैरों से लाचार चंदा बाबू, लकवाग्रस्त चंदा बाबू की पत्नी और परिवार में एकमात्र बचे विकलांग बेटे का..आइए सांस लेती इन ज़िंदा लाशों के साथ सुशासन का जश्न मनाएं..तारीख बता दीजिए सीवान पहुंचने का! एक वरिष्ठ पत्रकार सलाह दे रहे हैं कि और भी बड़े मुद्दे हैं, उनपर क्यों नहीं बात हो रही है? एक और वरिष्ठ पत्रकार कह रहे हैं कि शहाबुद्दीन सबको चाहिए सवाल ये है कि किसको कितना चाहिए? मैं अदना सा आम श्रमजीवी पत्रकार सिर्फ ये पूछ रहा हूं कि शहाबुद्दीन का मामला क्यों छोड़ देना चाहिए? इसलिए क्योंकि वो लालूजी का ख़ास है और लालूजी नमो के ख़िलाफ़ बुलंद आवाज़ हैं? या इसलिए क्योंकि नीतीश जी ने किसी जमाने में बिहार में सुशासन कायम किया था तो उन्हें सुशासन के खात्मे का भी अधिकार है? क्यों बिहार में तीन दिन से राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है? शहाबुद्दीन कहते हैं कि परिस्थितियों का सीएम हैं नीतीश, मधु कोड़ा हैं नीतीश, शराबबंदी पर काला कानून हैं नीतीश..रघुवंश कह रहे हैं कि नीतीश को कभी नेता माना ही नहीं, सबसे बड़ा दल राजद है तो नीतीश तो हालात के सीएम हैं ही। नीतीश के लोग शहाबुद्दीन को कह रहे हैं कि इंजेक्शन लगा देंगे और रघुवंश को कह रहे कि आउटडेटेड हैं। रघुवंश लालू से कह रहे कि देखिए नीतीश मीटिंग बुलवाकर गाली दिलवा रहे और नीतीश लालू से कह रहे कि देखिए आपके आदमी हमें बेइज्जत कर रहे, मुंह बंद करवाइए और जेलयाफ्ता लालू इंसाफ का फैसला कर रहे कि शहाबुद्दीन ने गलत कहां कहा? यही तो कहा कि लालूजी असली नेता हैं, इससे नीतीश जी को क्या बुरा लग सकता है! यूपी में नीतीश जोर-शोर से चुनाव लड़ रहे हैं, बनारस से शुरू हुए और मुलायम-माया सबको लपेटे जा रहे, कल लालू बीच में टपके और सीधे ऐलान कर दिए कि लड़ाई तो मुलायम और भाजपा के बीच है और उनका समर्थन मुलायम को है और जीत तो मुलायम की ही होगी। लगे हाथों ये भी कि राहुल गांधी तो जोकर हैं और उनको कुछ आता ही नहीं है। एक साथ नीतीश और कांग्रेस दोनों पर हमले का मतलब समझिए..जदयू के 71 विधायक हैं, नीतीश कमज़ोर-बेबस हैं, एक तिहाई विधायकों के टूटने का ख़तरा मंडरा रहा है, जिस दिन राजद ने ये टूट पक्की कर ली, उसी दिन तक नीतीश सीएम हैं। नीतीश अब अलग-थलग हैं तो इसलिए क्योंकि उन्हें जनता का समर्थन था, जो उन्होंने खो दिया है। राजनीतिक दोस्ती तो उनकी सिर्फ अवसरवादिता की ही रही है। नीतीश किसी के नहीं हैं, ये हर कोई जानता है, पहले कांग्रेस के खिलाफ जेपी के साथ थे, फिर जेपी के सिद्धांतों को छोड़कर कांग्रेस के साथ हो लिए, कभी लालू के साथ थे, फिर लालू को छोड़कर बीजेपी के हो लिए, कभी बीजेपी के साथ थे, अब लालू-कांग्रेस के साथ हो लिए। अब रंगा सियार वाली हालत है, लालू भाव नहीं दे रहे और बीजेपी भरोसा नहीं कर पा रही..हमारे जैसे नीतीश समर्थक परेशान हैं कि जिस लालूराज को हटाने के लिए 1990 से विकासवादी ताकतों ने लड़ाई लड़ी, वही एक बार फिर बिहार के सीने पर मूंग दल रहा है और इसके पीछे है सिर्फ औऱ सिर्फ नीतीश की सत्ता लोलुपता। लालू से जिस दोस्ती को नीतीश मास्टरस्ट्रोक मानकर देश में लागू करने चले थे, वही उनका ब्लंडर बन चुका है। खैर..मिलते हैं फिर, आप सभी को ईद-उल-अजहा की मुबारकबाद, आस्था से जुड़ा है फिर भी एक आग्रह है कि कृपया इस पाक दिन पर किसी निरीह की हत्या न करें..हम हिंदुओं में भी पहले भैंसे की कुर्बानी देते थे, अब नहीं देते, आप भी ऐसा कर सकते हैं। मैं खुद शाकाहारी हूं, इसलिए ये अपील कर रहा, मुस्लिम मित्र इसका बुरा न मानें और जो लोग खुद मांसाहारी हैं, वो बकरे की हत्या पर हायतौबा मचाने से बाज आएं, उन्हें ये हक नहीं है। दिन शुभ हो।

मेरे फेसबुक प्रोफाइल पर 13 सितंबर को पोस्ट इस आलेख पर 549 Likes, 130 shares और 20 कमेंट्स आए थे।

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_5


मेरे फेसबुक प्रोफाइल https://www.facebook.com/paramendra.mohan पर 16 सितंबर को पोस्ट इस अंक पर 200 Likes, 17 shares और 25 comments आए थे। इस सीरीज़ में मेरे पांच पोस्ट थे और खास बात ये कि उस वक्त 653 फ्रेंड्स ही फ्रेंड्सलिस्ट में थे। फेसबुक पर पुरानी पोस्ट मिलती नहीं, इसलिए मशहूर ब्लॉगर और मेरे पत्रकार मित्र खुशदीप सहगल जी की सलाह पर मैंने एक बार फिर से अपने इस ब्लॉग को इसके सहारे सक्रिय करने की कोशिश की है।

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_5 सभी साथियों को बधाई। मजबूरी में ही सही नीतीश कुमार जी देर आयद-दुरुस्त आयद। जैसी बत्ती लगी थी, होना यही था। शहाबुद्दीन जैसे अपराधी को राजद ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाकर और लालू यादव जी ने अपना वरदहस्त रखकर जिस तरह से वीवीआईपी बना रखा है, उसको दरकिनार करके उसकी जमानत रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में नीतीश सरकार को पहुंचना पड़ा, ये बड़ी बात है। वैसे खुद न भी आते, तो भी घसीट लिए जाते क्योंकि तीन अर्जियां एक साथ सुप्रीम कोर्ट में आई हैं और शहाबुद्दीन ‘साहेब’ की बोलती बंद है। अब हम काहे के लिए नीतीश जी की पोल खोलें कि अगर अकेली उनकी याचिका आती तो फिर लालूजी हरकाते कि निकालें का हम सुशासन? अब नीतीश जी डबल गेम खेल सकते हैं। लालू जी से कहेंगे कि देखिए बड़का भैया, अगर हम सुप्रीम कोर्ट न जाते तो सुप्रीमे कोर्ट हमको नोटिस भेज देता काहे कि चंदा बाबू की तरफ से प्रशांत भूषणवा त पहुंचिए न गया है। दूसरा वो जनता को ये कहेंगे कि देखिए पटना हाईकोर्ट छोड़ा था, हम तो सुप्रीम कोरट चले गए, आप तो जानते ही हैं कि हम सुशासन कायम किए हैं, अपराधी को पाताल से भी खींच लाते हैं। फिर बिहार की प्रबुद्ध जनता ताली पीटेगी और सुशासन बाबू के जयकारे लगाएगी। खैर, जो तीन अर्जी आई है, उसमें पहली अर्जी चंदा बाबू की है, जिसमें जमानत रद्द कर तुरंत जेल भेजने की मांग की गई है। अब चंदा बाबू की पहचान बताने की तो ज़रूरत है नहीं, एक आम आदमी, जिसके तीन बेटे सुशासन की बलि चढ़ चुके हैं। दूसरी अर्जी बिहार सरकार की है, जिसमें शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करने की अर्जी है और तीसरी याचिका हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार दिवंगत राजदेव रंजन की विधवा आशा रंजन की है, जिनके पति की हत्या के आरोपी की तस्वीर बिहार सरकार के नंबर 3 मंत्री तेजप्रताप यादव के साथ सुशोभित हो रही हैं और कैफ नाम का ये शूटर शहाबुद्दीन का करीबी है, ये सच्चाई लाख पर्दे में भी नहीं छिप पा रही है। नीतीश जी बस इतना ख्याल रखिएगा कि राजद के जिस दबाव में आकर आपने और आपकी सरकार ने हाईकोर्ट में जिस तरह कमज़ोर पैरवी कराई, उसकी पुनरावृत्ति सुप्रीम कोर्ट में मत कीजिएगा।नीतीश कुमार कभी अपने फैसले खुद लेते थे, कई बार अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने का फैसला भी बिना दूसरों की राय के ले लिया करते हैं, ये अलग बात है कि लालूजी से दोस्ती के बाद उनकी इस स्वाभाविक प्रवृति में बदलाव आ गया है, तभी तो बेचारे को बार-बार इतिहास याद दिलाना पड़ता है कि देखिए हमने कैसे अपराधों पर काबू करके सुशासन कायम किया था। अब खुलकर ये भी नहीं कह पाते क्योंकि जिसके कुशासन को खत्म कर सुशासन कायम किया था, उसी के रहमोकरम पर सरकार है और वो सीएम हैं। शहाबुद्दीन को जमानत एक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा इसलिए बना क्योंकि ये सिर्फ सुशासन के जेल जाने और अपराधराज के जेल से बाहर आने तक सीमित नहीं था, ये इसलिए भी बना क्योंकि इस प्रकरण ने ये साबित कर दिया था कि कैसे लालू यादव जैसे एक जेलयाफ्ता नेता ने पर्दे के पीछे से जनादेश के नाम पर नीतीश कुमार नाम के मुख्यमंत्री को कठपुतली बनाकर रख दिया है। बिहार की जनता और मुझ जैसे लोग राजनीतिक प्रतिबद्धताओं में फेरबदल और निष्ठा परिवर्तन को ख़ास तवज्जो नहीं देते क्योंकि ये राजनीति में न पहली बार हुआ है और न आखिरी बार होगा, राजनीति में सत्ता के लिए समझौते होते रहते हैं, लेकिन सत्ता के लिए राजनीतिक समझौता तक तो ठीक है, अपराधियों से समझौता अनुचित। इसी गलत कदम के खिलाफ हम सबने नीतीश जी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। भगवान आपको सदबुद्धि दे और उन लोगों को भी थोड़ा सा बुद्धि दे, जो मंत्री-विधायक-कार्यकर्ता-ढोल-नगाड़े के साथ 300 गाड़ियों का काफिला लेकर बिहार में विजय यात्रा निकाल रहे थे। हालांकि अदालती मामला है, पता नहीं कब ‘साहेब’ अपने असली घर जाएंगे, लेकिन बत्ती तो लग ही गई है!!