Saturday, January 31, 2009

तोहफे समेटिए,काम आएंगे

भला हो चुनाव का, जो ऐन मंदी के मौके पर आ रहे हैं, वर्ना ना जाने हमारा-आपका क्या हाल होने वाला था। जी हां..सरकार भले ही ये दावा कर रही है कि विकास दर साढ़े सात फीसदी होने का अनुमान है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में विकास दर महज 5.1 फीसदी आंक कर खतरे की घंटी बजा दी है। अब अंदरखाने की तो ख़बर यही है कि असर जो पड़ना है सो चुनावों के बाद ही पड़ना है, क्योंकि तबतक सरकार इसे संभालने के लिए चुनावी तौर पर मजबूर है। अब देखिए ना...गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया यानी किसान अपने गेहूं को पहले से ज़्यादा दाम पर बेच सकेंगे। रसोई गैस की कीमत तो पच्चीस रुपये प्रति सिलेंडर घटा ही दी गई है, भले ही इसपर दी जा रही सब्सिडी का बोझ सरकार पर और बढ़ गया है। और लगे हाथों पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी घट गए हैं। यही नहीं हवाई जहाजों के टिकट भी सस्ते हो गए हैं..खासकर इकॉनॉमी क्लास के...इससे पहले, होम लोन के रेट गिर ही चुके हैं और सिमेंट , सरिया के दामों में भी कटौती की जा चुकी है। सुनते हैं एक और राहत पैकेज आने वाला है...अब छोड़िए ये बहस कि ये सब अभी ही क्यों हो रहा है...इसमें उलझने दीजिए नेताओं को, पार्टियों को..आप तो बस ये सोचिए कि एक बार चुनाव हो गए तो फिर महंगाई पूरे शबाब पर होगी इसलिए इन तोहफों को सहेजकर रखिए..जितना बच जाए, बचाते चलिए..बूंद-बूंद से घड़ा भरने का वक्त आने ही वाला है क्योंकि हालात बता रहे हैं कि मंदी जल्दी जाने वाली नहीं है। और मंदी की मार पड़नी शुरू हो चुकी है ये तो हम सब जानते ही हैं। अब सरकारी बाबुओं के तो चुनावी मौसम की वजह से मंदी में भी बल्ले-बल्ले हैं, लेकिन प्राइवेट कंपनियों में काम करने वालों के होश उड़े हुए हैं। हर दिन ये सोचते हुए दफ्तर आते हैं कि कहीं जाते ही इनहाउस मेमो न नज़र आ जाए और हर दिन हांफते-कांपते घर जाते हैं कि पता नहीं अगले दिन लौटने पर नौकरी रहेगी या नहीं...मज़ाक नहीं, सच में हालत यही है। कॉस्ट कटिंग की मार वाकई जबर्दस्त पड़ रही है। सबसे मुश्किल तो ये है कि जहां पहले से काम कर रहे हों, अगर वहीं से हटा दिए गए तो नई जगह में भला इस मौसम में रखेगा कौन? इसलिए अब वो चर्चा जो हर दफ्तर में इस वक्त यानी जनवरी खत्म होने के वक्त होती थी, वो भी बंद है। वही चर्चा..प्रोमोशन की, इन्क्रीमेंट की...अब तो बस बात यही हो रही है कि नौकरी तो बच जाएगी ना यार? खुदा ना करे..कहीं वाकई वो वक्त आ गया तो क्या होगा..और दिलासा कौन किसको देगा, जब सबकी हालत एक सी होगी..तभी तो कह रहा हूं कि भाई, कुछ बचाते चलो...सरकारी तोहफे सहेजते-समेटते चलो..बुरे वक्त में काम आएंगे...वैसे कुछ आइडिया हो तो मुझे भी बताइएगा ज़रूर क्योंकि सुनते हैं एक आइडिया ज़िंदगी बदल देती है...
आपका
परम

Friday, January 30, 2009

अब तो कह दो..

क्य़ा बात थी दिल में तेरे,
जो तुम ना कह सके..
क्या दर्द था दिल में तेरे,
जो तुम ना सह सके..

हालात की दरिया में,
बहता है ये जहान,
वो क्या हुआ कि संग इसके,
तुम ना बह सके..

मझधार में फंसे हो तुम,
हमको ये थी ख़बर..
तभी तो तेरे साथ था,
पर तुम थे बेख़बर..

मत भूल कि ये रात भी,
अब जाएगी गुज़र..
अब तो कह दो वो बात,
जो अब तक ना कह सके..

आपका
परम

Tuesday, January 27, 2009

हवा का रुख मोड़ोगे ?

नवाब पटौदी-शर्मिला टैगोर, सैफ अली ख़ान-अमृता सिंह, मोहम्मद अज़हरुद्दीन-संगीता बिजलानी, अरबाज ख़ान-मलायका अरोड़ा, सुहेल ख़ान-सीमा, शाहरुख ख़ान-गौरी, उमर अब्दुल्ला- पायल...इन तमाम चर्चित जोड़ियों में पति मुस्लिम और पत्नी हिंदू हैं। अब ज़रा इसके उलट देखिए...सुनील दत्त-नरगिस, संजय दत्त-मान्यता, किशोर कुमार-मधुबाला, ऋतिक रोशन-सुजैन..इन जानी-पहचानी जोड़ियों का ज़िक्र इसलिए क्योंकि समाज के कुछ ठेकेदारों को इस बात पर सख्त एतराज है कि हिंदू लड़कियां, दूसरे मजहब के लड़कों से मिलें..उनके साथ घूमें-फिरे.. मैंगलोर के पब में श्रीराम सेना के गुंडों ने जो कुछ किया, उसके पीछे इस संगठन की यही सोच थी। अब इन्हें कौन समझाए कि हवा का रुख कभी मोड़ा नहीं जा सकता। वेलेंटाइन्स डे का हर साल विरोध करने वाली और इस मौके पर तोड़फोड़ करने वाली शिवसेना भले ही अब थक गई हो, लेकिन कोई माना क्या? अब ये अच्छा है, बुरा है इस पर बहस भले ही चले.. हर किसी की अपनी सोच है, हर कोई किसी बात का समर्थन कर सकता है तो किसी का विरोध..ये लोकतंत्र है और हर किसी को इसका अधिकार भी है। लेकिन, सवाल है अपनी बात मनवाने के लिए अख्तियार किए गए तरीके का... भगवान श्रीराम के नाम पर सेना बनाकर गुंडागर्दी करके तो ये लोग भगवान के नाम को भी बदनाम कर रहे हैं, जिसे कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। आपको कोर्ट की एक अहम टिप्पणी के बारे में याद कराता चलूं...किसी आपराधिक मामले में एक ऐसे शख्स को दोषी करार दिया गया, जिसका नाम एक महापुरुष के नाम पर था। इसपर कोर्ट ने कहा कि कम-से-कम इस तरह के कृत्य करने से पहले वो नाम का ख्याल तो रख लेता। भगवान राम ने कभी किसी महिला पर हाथ नहीं उठाया और ना ही उनकी सोच इतनी संकीर्ण थी कि किसी के दूसरे के साथ घूमने-फिरने पर डंडे फटकारते फिरें। क्या ये भी याद दिलाने की ज़रूरत है कि रावण को मारकर अगवा की गईं सीता जी को लंका से अयोध्या लाने वाले भी वही थे। और इस संगठन की बेशर्मी तो देखिए कि पहले तो लड़कियों को बालों से घसीटकर पीटी, थप्पड़ चलाए और अगले दिन ये भी कहा कि ये सब छोटी-मोटी घटना है। जनाब, आपकी बहनों के साथ ऐसा हुआ होता तब क्या कहते आप? और आप क्यों इतने फिक्रमंद हो रहे हो, उनका ख्याल रखने के लिए उनके घरवाले हैं ना ? अगर वो कोई ऐसी हरकत कर भी रहे हों, जो सार्वजनिक स्थल पर नहीं करनी चाहिए तो पुलिस है ना..सौ नंबर घुमाइए, शिकायत कीजिए.. आपको कानून हाथ में लेने की इजाजत किसने दी ? इन संगठनों के कर्ता-धर्ता अपने फायदे के लिए युवाओं के जेहन में ज़हर घोल रहे हैं, जिनसे इन्हें बचाना होगा। वर्ना हिंदुस्तान में तालिबानी संस्कृति पनपते देर नहीं लगेगी। गुंडातंत्र पर लगाम लगाने की ज़रूरत है। और पंजाब के तरनतारन के लोगों को कौन समझाए, जिन्होंने एक पति-पत्नी को इसलिए मार डाला क्योंकि उन्होंने घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी। अरे भाई... किस संस्कृति के नाम पर ये सबकुछ कर रहे हो..क्या देश में पहले कभी लड़कियों ने अपनी मर्जी से शादी नहीं की। हमारे देश में तो वैसे भी स्वयंवर की परंपरा रही है और आदिवासी समाज में तो आज भी लड़कियां अपनी पसंद के वर को जीवनसाथी चुनती हैं। तो सोच बदलिए और जो भटके हुए हैं, उनमें भी नई सोच भरिए। वक्त बदल रहा है, जमाना बदल रहा है, सोच को भी बदलने की ज़रूरत है क्योंकि तरक्की की राह में रोड़ा बनी तालिबानी सोच चार कदम आगे बढ़ रहे देश की टांग दो कदम पीछे खींच सकती है।
आपका
परम

युवा हुआ देश

साठ साल के युवा गणतंत्र को पूरे देश ने सलाम किया...युवा इसलिए कि अभी देश के नागरिकों की औसत उम्र एक भरपूर युवा की उम्र है यानी 25 से 26 साल के बीच.... और आने वाले चार दशक गुजरते-गुजरते देश और जवान हो जाएगा। इसे हम भले ही अभी तवज्जो नहीं दे रहे, लेकिन दुनिया को इसका पूरा अहसास है। तभी तो दुनिया भारत में भविष्य का नेता होने की संभावना तलाश रही है। आपको याद दिला दें कि यही वो औसत उम्र है, जिसके रहते अमेरिका ने बिल क्लिंटन के शासन में सबसे ज़्यादा आर्थिक तरक्की की थी। इस देश की राजनीति में भले ही बुजुर्ग और अनुभवी नेताओं की तूती बोल रही है मसलन मौजूदा प्रधानमंत्री 76 साल के हैं और अगर पीएम इन वेटिंग यानी आडवाणी जी की हसरत पूरी हुई तो वो तबतक 82 साल के होंगे। लेकिन, इन नेताओं के विकास के दावों का आधार युवा भारत ही है। वो भारत जो महामंदी के बीच भी चट्टान की तरह खड़ा है। यहां अगर कोई बड़ी कंपनी, मसलन सत्यम डूब भी रही है तो मंदी के चलते नहीं, बल्कि घोटाले की वजह से...हां, कमजोर बुनियाद वाली कंपनियां भले ही दम तोड़ रही हैं। युवाओं में समाज को बदलने का माद्दा है, युवाओं में सौ फीसदी श्रमदान की क्षमता है। सो इस गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर दिखा जवानों का शौर्य देखकर निश्चिंत हो जाएं..हमारे कदम कभी थमने वाले नहीं।
आपका
परम

Sunday, January 25, 2009

..एक बार मुस्कुरा दो

चाहो तो मेरी दोस्ती का इम्तिहान ले लो,
फिर भी ना माने दिल, तो मेरी जान ले लो..
रहते हो आप ही मेरे ख्यालों-ख्वाबों में,
ना हो अगर यकीन तो, ईमान ले लो...

गर आप हो लो साथ तो खुद को भुला दूं मैं,
मेरी जो भी पहचान है, पहचान ले लो..
इक बार मुस्कुरा दो तो फिर बात बन जाए,
बदले में मुझसे सारा जहान ले लो...
आपका
परम

Saturday, January 24, 2009

..बदलाव की बयार

बदलाव वक्त का तकाजा होता है और बदलाव वक्त के साथ ही आता भी है, लेकिन ये छोटा सा शब्द अमल में लाना कभी भी आसान नहीं होता। ज़रा सोचिए कि कोई शराबी हर दिन अपने परिवार से, दुनिया से शराब पीने के लिए तमाम लानत सुनता है, हर दिन नशा उतरने पर अपनी आदत को लेकर पछताता है और हर दिन फिर भी शराब पी लेता है। और शराब ही क्यों सिगरेट, पान, गुटखा, तंबाकू जैसी लतों के शिकार भी चाह कर खुद को एकदम से नहीं बदल पाते। आदत बदलनी आसान नहीं..अगर आप पीयर्स साबुन लगाते हैं और किसी दिन ये नहीं मिल पाता तो लक्स देखकर ही आपकी भौंहें चढ़ जाती है या फिर सुबह-सुबह आपके घर अखबार वाला किसी दिन टाइम्स की जगह हिंदुस्तान फेंक जाए तो आप पेपर पढ़ना ही नहीं चाहते। या फिर लीफ की चाय की लत हो और किसी दूसरी पत्ती वाली चाय मिल जाए तो नहीं पीते..मुश्किल है ना बदलाव..आप देर से उठने के आदी हों और किसी दिन किसी ज़रूरी काम से सुबह उठना हो तो रात भर नींद ही नहीं आती..ऐसे में बड़े बदलावों के बारे में सोचिए कि कैसे वो मुमकिन हो पाए? तभी तो क्रांति के बारे में कहा जाता है the process of revolution is evolutionary, but the effects are revolutionary. रूसी क्रांति हो या फिर फ्रांसीसी या फिर चीनी या भारत का स्वतंत्रता संग्राम.. और क्रांति सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र में नहीं..बाल विवाह रोकने, विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए भी सोच को बदलने की क्रांति हुई। आज अरब से ऊपर की आबादी अपनी धरती की पैदावार पर पल रही है तो इसके पीछे भी हरित क्रांति है। बदलाव की बात इसलिए जेहन में अचानक आई क्योंकि दुनिया जिसे अपना मुखिया मानती है और जो खुद को दुनिया का मुखिया कहता है, उसके नए मुखिया ने अपने चुनाव को बदलाव का चुनाव करार दिया है। जी हां, बात अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की...
अमेरिका को बदलने के नारे और सपने के साथ ओबामा राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ के बाद उनके पहले ही भाषण में मंदी की चुनौती मुख्य मुद्दा रहा। उन्होंने फिजूसखर्ची रोकने पर ख़ास ज़ोर दिया और पद संभालते ही पहला काम ये किया कि ह्वाइट हाउस के कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर डाली। लेकिन, शपथ के तामझाम में अमेरिका ने करोड़ों फूंक डाले। काश अमेरिका और दुनिया को बदलने के नारे को फिजूलखर्ची की परंपरा को बदलने के तौर पर ओबामा मिसाल पेश करते। ख़ैर..बदलाव तो फिर भी दिखा, जब ओबामा ने आतंकवाद पर पाकिस्तान को सख्त नसीहत दे डाली। अबतक दुनिया को ये समझ में नहीं आ रहा था कि जिस मुल्क में आतंकवाद और आतंकवादियों को पनाह मिलती रही है, जो मुल्क आतंक का कारखाना है, वही आतंकवाद के खिलाफ दुनिया की जंग में अमेरिका का सबसे बड़ा साथी क्यों बना हुआ है। लेकिन, बदलाव पाकिस्तान की ओर से भी दिखा..ऐसा कि ओबामा के भी होश फाख्ते होते दिख रहे हैं। पाकिस्तान ने चीन को अपना नेता होने का खुलेआम ऐलान कर नया खेल कर दिया है और बाक़ी किसी को पसंद आए या नहीं, कम से कम भारत को तो ये खेल कतई नहीं पसंद आ रहा। सो संतुलन की खातिर हमने अभी भी अमेरिका की पूंछ पकड़ रखी है। और बदल लालूजी भी गए हैं। जापान गए थे तो खैनी थूकने में काफी परेशानी हुई..अब लौटकर सबको खैनी छोड़ने की समझाइश पेश कर रहे हैं। दूसरे के घर के सामने कचड़ा फेंकने को नॉनसेंस बता रहे हैं। और सबसे ज़्यादा तो बदलाव हम हिंदुस्तानियों में है। अब देखिए ना..मंदी में बाहर वाले बेचारे खर्च में कटौती करने पर मजबूर हैं, लेकिन हमें तो बचपन से ही यही घुट्टी मिली है कि जितनी चादर हो, उतनी ही पांव पसारे..और हम करते भी यही है। जेब भारी हो तो छककर दारू भी पी लेते हैं और अगले दिन फाका भी हो तो गम नहीं करते। रात तो रात, दिन में भी सड़क किनारे दारु पीकर लेटे लोगों का नज़ारा यहां आम है। तो वक्त के मुताबिक हमसे ज्यादा भला कौन बदल सकता है। और सच तो ये भी है कि हमारी नज़र बदलते भी देर नहीं लगती। जिसके साथ बड़े होते हैं, वही भाई बदल जाता है या यूं कहें कि उसके बारे में हमारा नजरिया बदल जाता है। जो दोस्त हर वक्त साथ होता है, स्टेटस बदलने के साथ ही उसका साथ बदल जाता है। ठीक ही है...बदलाव की बयार तो बहती ही है, अब कोई चाहे तो उसके साथ बहे या नहीं...
आपका
परम

Sunday, January 18, 2009

ये कबतक अंडा देगा?

ना निगलते बने, ना उगलते बने..कुछ यही हो रहा है कसाब को कस्टडी में रखने वाली मुंबई पुलिस के साथ। कसाब के लिए जो खाना आता है, वो उससे पहले किसी पुलिसवाले को खाकर देखना पड़ता है कि इसमें कहीं ज़हर तो नहीं.. उसके लिए जेल में अदालत लगाई जा रही है ताकि बाहर ले जाते या आते वक्त कहीं कोई हमला न हो जाए...लेकिन, खतरा जेल के बाहर तक ही सीमित नहीं है। जेल के अंदर भी कसाब को कोई ठिकाने लगा सकता है...मुमकिन है दाउद के गुर्गे, जो पहले ही से जेल में बंद हैं, मुमकिन है कसाब की कहानी सुनवाई और मुकदमेबाज़ी से पहले ही ख़त्म कर दें। कसाब इस वक्त बेहद कीमती है, क्योंकि उसकी सलामती पर काफी हद तक टिका है मुंबई हमलों के गुनहगारों के चेहरे से मुखौटा हटाने का दारोमदार। कसाब से भारतीय एजेंसियों के साथ-साथ अमेरिकी एजेंसी भी पूछताछ कर रही है क्योंकि इस जीते-जागते सबूत को नकारना पाकिस्तान के लिए मुमकिन नहीं है। ज़ाहिर है ऐसे में मुंबई हमले के इस इकलौते ज़िंदा सबूत को सहेजकर रखना ही होगा। तभी तो इसे आर्थर रोड जेल की अंडा सेल में रखा जाना है। लेकिन, सबकुछ जल्दी निपटाना होगा क्योंकि हमने कहीं पढ़ा है कि इतिहास खुद को दोहराता है और कहीं वो बदनुमा इतिहास न दोहरा जाए, जिसमें किसी मंत्री की बेटी या फिर यात्री समेत बंधक बने विमान की फिरौती के बदले हम खुद कसाब को आतंकियों के ही हवाले कर आएं। ठीक है और लाजिमी भी है कि फिलहाल वक्त का तकाजा है, कानूनों की बाध्यता है और कूटनीतिक ज़रूरत भी है कि कसाब को बचाकर रखा जाए...उस आतंकी को वीवीआईपी मेहमान की तरह सुरक्षा दी जाए, जिसने साथियों के साथ मिलकर 183 लोगों को मार डाला। लेकिन, ये ध्यान भी रखना होगा कि कहीं कसाब अनंतकाल तक अंडा सेल में अंडा ही न देता रह जाए। संसद हमले के दोषी अफजल का मामला तो आपको याद है ना...
आपका
परम

Saturday, January 17, 2009

घर के घोटालेबाज़

एक कहावत बहुत प्रचलित है...घर बसा नहीं, लेकिन लुटेरे पहुंच गए। अचानक इसका ख्याल आया, जब दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए के फ्लैट्स के ड्रॉ में घोटाले की ख़बर देख-पढ़ रहा था। वो तो भला हो मीडिया का, जो हो-हल्ला मचा तो सरकार और कोर्ट को भी दाल में कुछ काला नज़र आया और जब जांच आगे बढ़ी तो पूरी दाल ही काली नज़र आ रही है। जो सामने दिख रहा है, उससे लग रहा है कि अफसर, डीलर सब घोटाले में शामिल हैं। पहले एससी कैटेगरी वाले फ्लैट्स में घपले का शक था, अब जनरल कैटेगरी भी लपेटे में है। हालात ये है कि पूरा ड्रॉ भी रद्द हो सकता है। जिन्हें फ्लैट नहीं मिला वो पहले किस्मत को कोस रहे थे, अब डीडीए को दोष दे रहे हैं। जिन्हें किस्मतवाला होने के सर्टिफिकेट के तौर पर फ्लैट मिला वो भी किस्मत को कोस रहे हैं कि पता नहीं कहीं ड्रॉ रद्द हो गया तो दुबारा किस्मत मेहरबान होगी भी कि नहीं...हालात वैसे ही हैं जैसे रनआउट का फ़ैसला जब थर्ड अंपायर के पास पेंडिंग रहता है तो फिफ्टी-फिफ्टी का विज्ञापन नज़र आता है। ये तो है दिल्ली की बात...लेकिन, मुंबई भी कम नहीं है। यहां भी सस्ते सरकारी फ्लैट के लिए इन दिनों फॉर्म बिक रहे हैं..कीमत है सौ रुपये, लेकिन कुछ लोग इसे हज़ारों में भी बेच रहे थे। अब भला सौ रुपये के फॉर्म हज़ारों में लोग खरीद क्यों रहे थे, तो इसका जवाब ये है कि इन फॉर्मों के साथ फ्लैट मिलने की गारंटी भी बेची जा रही थी। अब ये तो पता नहीं कि ये महज ठगी थी या यहां भी दिल्ली की तरह अंदर से सेटिंग थी और हज़ारों में फॉर्म बेचना इस डील की पेशगी मात्र थी। लेकिन, चौंकिए मत...घर के घोटालेबाज़ सिर्फ महानगरों तक ही सिमटे नहीं हैं। हां, चूंकि ये महानगर के मामले हैं, इसलिए इनपर सबकी तवज्जों ज़रूर पहले और ज़्यादा जाती है। ..सरकार की एक योजना है, इंदिरा आवास योजना..बेहद गरीब तबके के लोगों को भी घर नसीब हो, इसके लिए उन्हें आर्थिक मदद दी जाती है। अब गरीब तो गरीब ठहरे, बाबुओं तक पहुंच नहीं सकते, इसलिए दलालों की चिरौरी करते हैं। ये दलाल मुखिया जी से लेकर बाबुओं तक बेघर गरीबों की लिस्ट पहुंचाते हैं और ज़ाहिर सी बात है कि वो समाजसेवा कतई नहीं करते। बाक़ायदा कमीशन काटकर चेक थमाते हैं। तो बताइए कहां नहीं हैं घर के घोटालेबाज़। वैसे उन लोगों को भी खुश होने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं, जो डीडीए, म्हाडा या इंदिरा आवास योजना जैसे पचड़ों से दूर रहकर आशियाना बसाना चाहते हैं। ज़रा सोच-समझकर बिल्डर से बात कीजिएगा क्योंकि सुपर एरिया-कारपेट एरिया, पीएलसी वगैरह का चक्कर घनचक्कर से कम नहीं और वो भी ज़्यादा खुश न हों, जो ज़मीन खरीदकर या अपनी जमीन पर घर बनवा रहे हैं क्योंकि ठेकेदार से बनवाया तो भी फंसे और खुद बनाया तो भी...वो ऐसे कि सीमेंट, छड़, कांच, प्लम्बर, इलेक्ट्रिक फिटिंग जैसे मामले गैरअनुभवी लोगों के छक्के छुड़ा कर ही दम लेते हैं। और ये हालात हर जगह है..यूं ही नहीं कहते कि भारत विविधता में एकता का देश है। लेकिन, हिम्मत मत हारिए..क्योंकि घर तो सबका सपना है और ज़िंदगी में और कुछ हो या नहीं, सपना ही तो अपना है।
आपका
परम

Tuesday, January 6, 2009

..कुछ भी ठीक नहीं

नोएडा में एक छात्रा के साथ गैंग रेप हुआ। क्रिकेट खेलकर लौट रहे कुछ लड़कों ने मॉल के सामने से छात्रा को अगवा किया और हैवानों को शायद जीती-जागती लड़की भी बैट और बॉल की तरह ही खेलने का सामान नज़र आई। वैसे बलात्कार की घटनाएं किसी को अब नहीं चौंकातीं। आदी हो चुके हैं हम सब सुन सुनकर..चलती कार में बलात्कार, घर में बलात्कार.. बहस भी बहुत हो चुकी..बलात्कारी को सख्त सज़ा मिलने से लेकर फांसी दिए जाने तक...और नतीजा भी हम देख रहे हैं, कुछ होना-जाना नहीं.. बिगड़ैल रइसजादों को नोटों की गड्डी और कार संस्कार में देने वाले मां-बाप को पता नहीं अपनी औलाद की ये कारगुजारियां कैसी लगती होंगी? सड़क किनारे कार खड़ी कर पानी की तरह शराब पीकर देर रात घर लौटने वाले अपने बच्चों से क्या सवाल करते होंगे ये लोग, ये भी भगवान जानें.. खैर..अब तो इन बातों पर न लिखने को जी चाहता है, न ही बात करने का..क्योंकि सिर्फ लिखने-बोलने से कुछ होना-जाना नहीं है। चलिए, दूसरी बात करते हैं...
मेरा मन इन दिनों कुछ उदास है,
हर वक्त ये किसी को ढूंढता आसपास है..
इस बात से बेख़बर कि
जो खो गया, अब बेकार, उसकी तलाश है।
पिछले कुछ वक्त से मैं इस ब्लॉग को वक्त नहीं दे पा रहा हूं। कुछ व्यक्तिगत परेशानियां भी हैं, कुछ जिम्मेदारियां भी हैं, जिनको निभानी है। अगले एक हफ्ते तक शायद आपसे संपर्क नहीं हो पाए, लेकिन उम्मीद है, अगले हफ्ते जब ब्लॉग पर लौटूंगा, आपका वही प्यार, वही साथ मिलेगा।
आपका
परम

Friday, January 2, 2009

..शुभकामनाएं

सबसे पहले तो सभी मित्रों और पाठकों को नए साल की शुभकामनाएं...चाहता तो था कि आतंकमुक्त नववर्ष की बधाई दूं, लेकिन पहले ही दिन गुवाहाटी में धमाके हो गए और कई बेमौत मारे गए। उधर, जम्मू में आतंकियों से मुठभेड़ में जांबाज शहीद हो गए। चाहता था कि मंदी की मार से उबरने की बधाई भी दूं, लेकिन दिल झूठी तसल्ली देना नहीं चाहता। पिछले दो-चार दिन का किस्सा सुनाता हूं। मीडिया में काम करने वाले मिश्रा जी और कुमार साहब को पता चला चला कि इन दिनों मकान सस्ते मिल रहे हैं। अब मिश्रा जी की पत्नी चेतावनी दे चुकी हैं कि इस मंदी और राहत में घर नहीं खरीदा तो फिर दाना-पानी बंद समझें। उधर, कुमार साहब के घर पर मार कर रहे लड़की वाले सबसे पहले यही सवाल दाग रहे हैं कि दस साल की नौकरी के बाद दिल्ली में घर क्यों नहीं लिया...सो दोनों के साथ मुझे भी एक बार फिर घर खरीदने की इच्छा दुबारा हो गई। बहरहाल कुमार साहब को जो घर जंचा वो 32 लाख का था और कुल मिलाकर हिसाब ये बैठा कि 35 तक मामला जमेगा..21 तो फायनांस हो जाएगा बाकी 14 का जुगाड़ करें। डीलर ने कहा, जेब में दस पेटी हों तो घर ढूंढो, वर्ना सपना देखते रहो। तबसे वो सपना देख रहे हैं, पता नहीं कब सच होगा..उधर, मिश्रा जी की माली हालत कुछ ज़्यादा ही पतली है। पूरी ज़िम्मेदारी सिर पर है और जेब खाली की खाली...बेचारे समझ ही नहीं पा रहे कि करें तो क्या करें..जुगाड़ में हैं कि अभी कोई एडवांस बुकिंग कराकर बीवी को समझा लें...सो बिल्डर से ईएमआई शेयरिंग स्कीम पर माथापच्ची कर रहे हैं। भगवान भला करें..शायद मामला फिट हो जाए ताकि वो बीवी की नज़र में हिट हो जाएं वर्ना मेरी तरह फिसड्डी ही रह जाएंगे। बहरहाल, आज ही के दिन पिछले महीने इस ब्लॉग पर मैंने अपना पहला लेख लिखा था। एक महीने हो गए, इस एक महीने में अपने इस अनुभव को कुछ इस अंदाज़ में बयां करना चाहूंगा...

यहां हर किसी की सोच है,
हर सोच का आकार है..
ये ब्लॉगर्स की दुनिया है,
दिलों में जलन नहीं..सिर्फ प्यार है..प्यार है..प्यार है..

आप सबका शुक्रिया...आप सबको नए साल की शुभकामनाएं...हम सब ब्लॉग के जरिये, इसी तरह एक-दूसरे से जुड़े रहें..एक-दूसरे का अनुभव बांटे...गम बांटे और प्यार तो बांट ही रहे हैं..बांटते ही रहेंगे। happy new year
आपका
परम