Tuesday, February 24, 2009

इस मर्ज का इलाज क्या?

बीमारी का इलाज़ धीरे-धीरे करना चाहिए। खासकर अगर बीमारी ज्यादा फैल गई हो, वर्ना इलाज का उल्टा असर हो जाता है। ये बात उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने राजनीति में अपराधियों के बढ़ते दबदबे के संदर्भ में उस वक्त कही थी, जब वो भयमुक्त समाज के नारे के साथ सत्ता में आई थीं। लेकिन, कहते हैं ना कि चोर-चोर मौसेरे भाई सो बहन जी के इलाज का तरीका भी देखिए। मुख्तार अंसारी इस बार पवित्र धर्मनगरी वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और वो भी बहन जी की पार्टी यानी बीएसपी के टिकट पर और ईनाम मुख्तार के भाई अफज़ाल अंसारी को भी मिला है। अफज़ाल गाज़ीपुर से बीएसपी टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। अब ये तो मायावती ही बता सकती हैं कि विधायक कृष्णानंद हत्याकांड के आरोपी ने राजनीति में आतंक के अलावा ऐसा कौन सा काम कर दिया कि उन्हें वो टिकट से नवाज़ रही हैं या फिर उनका इलाज बिल्ली को दूध की रखवाली वाले नुस्खे पर तो नहीं चल रहा। वैसे चुनावी दंगल में दागी सिर्फ बीएसपी से नहीं किस्मत आजमाएंगे, ऐसी ही छवि वाले ब्रजभूषण शरण सिंह इस बार समाजवादी पार्टी टिकट पर गोंडा के बदले कैसरगंज से बुलेट के सहारे बैलेट बटोरते नज़र आएंगे। अदाकारी के जौहर दिखाने के साथ-साथ ए के 47 रखने के मामले में नाम कमा चुके संजय दत्त लखनऊ से साइकिल की सवारी कर ही रहे हैं तो जेल में बंद डॉन बबलू श्रीवास्तव भी वहीं से चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे हैं। ऐसे ही नेताओं से धन्य है हमारा लोकतंत्र...चलिए यूपी के बाद देख लेते हैं बिहार का हाल...मज़ाक में लोग कहते भी हैं, दोनों भले ही दो राज्य हैं..लेकिन, दोनों भाई जैसे ही हैं। तभी तो इन दोनों राज्यों में चुनाव के दौरान शांति बनाए रखना चुनाव आयोग के लिए उतनी ही बड़ी चुनौती मानी जाती है, जितना आतंक प्रभावित जम्मू-कश्मीर या नक्सल हिंसा से ग्रस्त झारखंड या उड़ीसा में चुनाव कराना। खैर..हाल ही में टीवी पर देखा कि रामविलास पासवान अपने साथ खड़े सूरजभान सिंह को बलिया से लोकजनशक्ति पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर रहे थे और सूरजभान लोकतंत्र की आवाज़ को संसद में बुलंद करने के लिए जनता से वोट देने की अपील कर रहे थे। सूरजभान भी हाल तक पटना के बेऊर जेल में हत्या के मामले में बंद थे और बिहार से बाहर के लोगों के लिए भले ही अपरिचित हों, लेकिन मोकामा से लेकर बलिया तक इनकी दबंगई काबिले-तारीफ है। इनके मुकाबले ही तो नीतीश कुमार ने छोटे सरकार यानी अनंत सिंह नाम के गुंडे को बड़ा नेता बनवाया है। और ऐन चुनाव से पहले तिहाड़ में बंद पड़े पप्पू यादव को भी जमानत मिल गई है। सब चुनाव मैदान में अपने विरोधी उम्मीदवारों को देख लेने की तैयारी में हैं। हाल ही में शाहनवाज़ हुसैन संसद में आरजेडी के तस्लीमुद्दीन को देख लेने की ललकार खुलेआम लगाते नज़र आए। बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान ट्रस्ट ने कुछ दिन पहले सभी दलों को एक चिट्ठी लिखी थी। मजमून ये था कि ये दल चुनावों में किसी दागी या आपराधिक छवि वाले नेता को टिकट नहीं देंगे वर्ना उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। कई संगठन भी ऐसे लोगों को चुनाव में उतारने के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं। लेकिन, मानता कोई नहीं है क्योंकि हर कोई जानता है कि बैलेट और बुलेट का संबंध रोटी और सब्ज़ी का है, चावल और दाल का है। हां, बात राजनीति में स्वच्छता की सब करता है और जब बात दागियों की आती है तो दलील भी देता है कि जबतक सज़ा नहीं होती, तबतक कोई दागदार नहीं होता..सवाल ये है कि फिर ये लोग चुनाव जीत कैसे जाते हैं। हम लोग क्यों उन्हें वोट दे देते हैं। तो जवाब ये है कि आज भी अगर वोटिंग आठ बजे सुबह से शुरू होती है और लोग दो-चार घंटे बाद वोट देने मतदान केंद्र पर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि उनका वोट तो डाला जा चुका है। जी हां, बड़े शहरों के वोटर भले ही लोकतंत्र की इस तेज़-तर्रार पद्धति से अनजान हों, लेकिन यूपी और बिहार के लोग इससे कतई अनजान नहीं। जिन मतदान केंद्रों पर वोटर पचास फीसदी की तादाद में पहुंचते हैं, वहां भी अस्सी-नब्बे फीसदी वोट पड़ते हैं। पोलिंग एजेंट अगर बराबरी की टक्कर वाले हों तो वोट भी बराबर में बांट लेते हैं और अगर खास पार्टी का एजेंट दमदार हो, रुतबेदार हो तो अपने उम्मीदवार के लिए वोट छापने में पूरा ज़ोर लगा देता है। बिहार में गुजरे जमाने का एक दबंग विधायक अपने इलाके के वोटरों को कहता था...दिन तुम्हारा, रात हमारा...(हमारी नहीं हमारा क्योंकि बात बिहार की है, भाषा पर ना जाएं)..यानी अगर दिन में हमें वोट नहीं दिया तो उस समय तो सुरक्षाकर्मी आपको बचा लेंगे, लेकिन रात में कौन बचाएगा ? अब जान का डर तो भई सबको है..तभी तो लोग एक रंगदार को पैसे देकर दूसरों से खुद को महफूज रखने को मजबूर हैं और इसी मजबूरी का फायदा उठा रही हैं ये पार्टियां...और जबतक हम मजबूर हैं तबतक ये सब चलता रहेगा..चलता रहेगा...
आपका
परम

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

लानत है इन सब पर,सभी को पडी है अपनी जेब भरने की, अपनी ऎश करने की, लेकिन जिस दिन एक भुखा गरीब खडा हो गया उस दिन इन हरामियो को कोन बचायेगा, क्योकि जब मरना ही है भुख से तो क्यो ना लड के ही मरा जाये, फ़िर इन पिल्लो को भगवान भी नही बचा पायेगा.
आप ने अपनी पोस्ट मै बहुत ही सुंदर ओर विस्तार से सारे हालात लिखे है.
धन्यवाद

संगीता पुरी said...

बहुत विस्‍तार से आपने सच ही लिखा है...देखते रहिए ...कब सब कुछ सामान्‍य होता है ?