इन दिनों तमाम चैनल और अखबार तालिबान, पाकिस्तान और अल क़ायदा की रट लगा रहे हैं और पिछले तीन दिन से देश के अलग-अलग राज्यों में अचानक से बढ़े नक्सली हमले पर किसी की तवज्जो ही नहीं जा रही। शायद मीडिया की नज़र में आतंकवाद ज्यादा बड़ा होता है क्योंकि उसके निशाने बड़े होते हैं, जबकि नक्सलवाद सुनने में ही डाउनमार्केट लगता है। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि नक्सली हिंसा ने भी आतंकवादी हमलों से कम क़हर नहीं बरपाया है। नक्सली नेटवर्क भी आतंकी नेटवर्क से कम फैला हुआ नहीं है। आंध्र प्रदेश से लेकर उड़ीसा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के कुछ इलाके और पश्चिम बंगाल तक इसकी चपेट में हैं। ख़ास बात ये है कि जब-जब चुनाव होने वाले होते हैं, नक्सली गतिविधियां एकदम से बढ़ जाती हैं। दो दिन पहले उड़ीसा के सुंदरगढ़ ज़िले में नक्सलियों ने भालूलता रेलवे स्टेशन उड़ा दिया। पूरे दिन संबलपुर रेलखंड पर ट्रेनों की आवाजाही ठप रही। इसके बाद बिहार में रतनगढ़ स्टेशन फूंक दिया और फिर मुंगेर के पास रेलवे ट्रैक उड़ा दिया। आतंकवाद हमारे देश में पिछले कुछ साल से बढ़ा है क्योंकि इससे पहले ये ज़हर जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित था। लेकिन, नक्सलवाद बहुत पुराना मर्ज है, जो शायद लाइलाज़ भी होता जा रहा है। सरकार इसपर हर साल करोड़ों रुपये फूंकती जा रही है। हर साल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई जाती है और रणनीति तय की जाती है। लेकिन, नतीजा ये सामने आता है कि कभी महाराष्ट्र में एक साथ दर्जनों पुलिस वालों को मारकर उनकी आंखें तक नक्सली निकाल लेते हैं तो छत्तीसगढ़ के जंगलों में तलाशी अभियान में गए दस्ते का ही सफाया कर देते हैं। ज़रूरत है आतंक के नेटवर्क को तोड़ने की कोशिशों के साथ-साथ नक्सल नेटवर्क को तोड़ने और इस समस्या की जड़ तक पहुंचने की युद्धस्तर पर कोशिश करना...वर्ना एक ओर तो देश पाकिस्तानी आतंकियों की साज़िशों को नाकाम करने में उलझा रहेगा और दूसरी ओर देसी नक्सलियों की हिंसा का सामना करने में..
आपका
परम
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
अजी यह देसी नक्सलियों भी इन्ही नेताओ की ओलाद है, यह अपना अपना वोट बेंक मजबुत करने के लिये सब ड्रामे करवाते है, वरना इअतने बडे देशमै बिना सहारे कोई चिडिया भी पर मार जाये, क्या मजाल है, सब से पहले इन राज्यो के नेताओ से निपटें समस्या अपने आप हल हो जायेगी.
धन्यवाद
Post a Comment