Sunday, March 8, 2009

शुक्र है ये इंडिया है..

महिलाओं की कोई पहचान नहीं होती इसलिए उन्हें आईकार्ड की क्या ज़रूरत है ? पाकिस्तान में तालिबान ने यही नया फरमान सुनाया है। और साथ ही ये हुक्म भी दिया है कि अगर कोई महिला अपना आईकार्ड लेने सरकारी दफ्तरों में जाती है या सरकारी दफ्तर उन्हें आईकार्ड जारी करते हैं तो दोनों को गंभीर नतीज़े भुगतने पड़ेंगे। ख़ास बात ये है कि ये फरमान उस दिन जारी किया गया, जब पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही थी। अमेरिका ने रूस के खिलाफ अफगानिस्तान में अल क़ायदा को खड़ा किया और वही अल क़ायदा बाद में अमेरिका के लिए सबसे घातक बन गया। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के खिलाफ तालिबान को खड़ा किया और अब तालिबान ही अजगर बनकर पूरे मुल्क को निगलने के लिए मुंह खोले हुए है। तालिबान महज एक आतंकी संगठन का नाम नहीं है, बल्कि ये उस सोच का भी नाम है, जो इस संगठन की तरह महज अफगानिस्तान या पाकिस्तान तक सिमटा नहीं है। जब आतंक के खिलाफ जंग की अगुवाई का दावा करने वाले अमेरिका अल कायदा और तालिबान जैसे संगठनों के आगे घुटने टेक रहा है तो इस सोच के बढ़ते दायरे से हम कब तक बच पाएंगे ? और यही वजह है कि इन आतंकियों की ताकत बढ़ती जा रही है क्योंकि वो अपनी सोच सामान्य सोच वाले लोगों के जेहन में डालने में कामयाब हो रहे हैं। ज़रा सोचकर देखिए कि कश्मीर के लोग अगर पाकिस्तानी आतंकियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद नहीं करते तो क्या घाटी में आज़ादी के छह दशक बाद भी आतंकवाद ज़िंदा रहता ? अगर स्वात या वजीरिस्तान के लोग ठान लें तो क्या मुट्ठी भर तालिबान वहां की पूरी आबादी की आज़ादी पर काबू कर सकते हैं ? लेकिन, हकीकत में ऐसा होता नहीं...जन्नत में हूर मिलने के सपने दिखाकर फिदायिन बनाकर उन्हें मरने पर मजबूर कर दिया जाता है ताकि एक जान की कीमत पर लाशों के अंबार लगाए जा सकें। आतंकी आका हर किसी की पहचान मिटाना चाहते हैं ताकि अपनी पहचान बना सकें। पहचान किसी संस्कृति की, पहचान किसी हुकूमत की, पहचान उन आतंकियों की भी, जो महज फिदायिन या जेहादी बनकर रह जाते हैं। ये सिर्फ अपनी पहचान बनाना चाहते और जानते हैं..पहचान आतंक की..ऐसे में भला इनके होते महिलाओं की पहचान की क्या बिसात? शुक्र है कि भारत में ऐसी सोच वाले लोगों की तादाद अभी इतनी बढ़ी कि वो तालिबान जैसी सोच यहां थोप सकें और जिन्होंने ऐसी कोशिश की भी है, उसका अंजाम वो खुद भुगत चुके हैं। वर्ना क्या होता, ये सोचकर भी दिमाग सोचना बंद कर देता है।
आपका
परम

1 comment:

Anonymous said...

हां, इंडिया होने पर शुक्र जरूर मनाइए मगर इस हकीकत को भी जान-मान लीजिए कि बेटियां हमारे यहां भी मारी जाती हैं। दहेज के लिए बहूएं हमारे यहां भी जलाई जाती हैं। बलात्कार यहां भी होते हैं। महिलाएं यहां भी दबी-कुचली हैं।