Monday, March 16, 2009

वरुण की छटपटाहट

विरासत का असर ज़्यादा गहरा होता है या सियासत का..वरुण गांधी के पीलीभीत में दिए गए भाषणों के बाद यही सवाल किया जा रहा है। कांग्रेस कह रही है कि वरुण बीजेपी के नेता हैं, बीजेपी के उम्मीदवार हैं, इसलिए बीजेपी की जुबान बोल रहे हैं। दूसरी ओर, बीजेपी के बाकी नेता तो जुबान नहीं खोल रहे, लेकिन मुख्तार अब्बास नक़वी की नज़र में वरुण का बयान गांधी-नेहरू परिवार की विरासत से बनी सोच का नतीज़ा है। दरअसल सात और आठ मार्च को वरुण ने यूपी के पीलीभीत में दो जगह चुनाव सभा की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि अगर गलत तबके का कोई आदमी हिंदुओं की ओर हाथ उठाएगा तो उसे काट दिया जाएगा। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के दिखने में लादेन जैसा होने की बात कही...हिंदुओं से नाइंसाफी का जिक्र किया और जयश्रीराम के नारे लगाए। आरोप है (और ऑडियो, वीडियो से इसपर मुहर भी लगती दिख रही है) कि वरुण ने कुछ अपशब्दों का भी इस्तेमाल किया। ख़ैर चुनाव आयोग ने लोकल इंटेलिजेंस की रिपोर्ट पर उन्हें नोटिस थमा दिया.. वरुण का कहना है कि उन्होंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जिससे आचार संहिता का उल्लंघन हो। लेकिन, ये मामला सिर्फ सियासी नहीं है। जो लोग वरुण और पीलीभीत को जानते हैं, वो ये भी जानते हैं कि मेनका गांधी के बेटे को यहां से जीतने में कोई मुश्किल नहीं होने जा रही। फिर वरुण ने ये ज़हरीली जुबान क्यों उगली? दरअसल, ये छटपटाहट है अपनी पहचान बनाने की..इंदिरा गांधी की बहू होने के बावजूद मेनका को अपनी पहचान बनाने के लिए अपना संघर्ष करना पड़ा था, जबकि सोनिया को विरासत में ही ये पहचान हासिल की गई। आज सोनिया के बेटे राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की बात चलती है, लेकिन वरुण का कद कहीं नहीं ठहरता। एक परिवार के होने के बावजूद दोनों भाइयों की पहचान अलग है तो दिल को कुछ न कुछ तो सालता ही है। वरुण अपने भाषण में बार-बार ये कहते दिखाई और सुनाई दे रहे हैं कि हिंदुओं की ओर जो हाथ उठेगा, वरुण उस हाथ को काट डालेगा। लोगों से कह रहे हैं कि अगर कोई थप्पड़ मारे तो हाथ काट दो ताकि वो दोबारा थप्पड़ नहीं मार सके। सोचकर देखिए कि वो किस हाथ की बात कह रहे हैं...किसी मुसलमान का या फिर कांग्रेस का? आखिर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह भी तो हाथ ही है। और जहां तक आचार संहिता के उल्लंघन का मामला है, हर पार्टी, हर नेता इसका अचार बनाकर आराम से खा रहा है। शिवराज सिंह चौहान बिजली बिल पर फोटो छपवा रहे हैं तो तृणमूल कांग्रेस विकलांगों को साइकिल बांट रही है...और मुलायम, जयाप्रदा, गोविंदा करारे नोट बांट रहे हैं। चलिए, चुनाव आयोग का सिरदर्द चुनाव आयोग संभाले...कम से कम उनका तो कुछ भला हो जाए, जिन्हें भागते भूत की लंगोट की तरह कुछ हाथ लग रहा है वर्ना तो पूरे पांच साल यही नेता उनसे और उनके हक से कुछ ना कुछ छीनते ही रहते हैं।
आपका
परम

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

इन सभी नेताओ को सिर्फ़ जुते पहनाओ, एक वोट भी मत दो, यह सब स्वार्थी है.
धन्यवाद आप के लेख से इन नेताओ की पोल पट्टी खुलती है. बहुत ही सुंदर ओर सटीक लिखा आप ने.