सबसे पहले तो सभी मित्रों और पाठकों को नए साल की शुभकामनाएं...चाहता तो था कि आतंकमुक्त नववर्ष की बधाई दूं, लेकिन पहले ही दिन गुवाहाटी में धमाके हो गए और कई बेमौत मारे गए। उधर, जम्मू में आतंकियों से मुठभेड़ में जांबाज शहीद हो गए। चाहता था कि मंदी की मार से उबरने की बधाई भी दूं, लेकिन दिल झूठी तसल्ली देना नहीं चाहता। पिछले दो-चार दिन का किस्सा सुनाता हूं। मीडिया में काम करने वाले मिश्रा जी और कुमार साहब को पता चला चला कि इन दिनों मकान सस्ते मिल रहे हैं। अब मिश्रा जी की पत्नी चेतावनी दे चुकी हैं कि इस मंदी और राहत में घर नहीं खरीदा तो फिर दाना-पानी बंद समझें। उधर, कुमार साहब के घर पर मार कर रहे लड़की वाले सबसे पहले यही सवाल दाग रहे हैं कि दस साल की नौकरी के बाद दिल्ली में घर क्यों नहीं लिया...सो दोनों के साथ मुझे भी एक बार फिर घर खरीदने की इच्छा दुबारा हो गई। बहरहाल कुमार साहब को जो घर जंचा वो 32 लाख का था और कुल मिलाकर हिसाब ये बैठा कि 35 तक मामला जमेगा..21 तो फायनांस हो जाएगा बाकी 14 का जुगाड़ करें। डीलर ने कहा, जेब में दस पेटी हों तो घर ढूंढो, वर्ना सपना देखते रहो। तबसे वो सपना देख रहे हैं, पता नहीं कब सच होगा..उधर, मिश्रा जी की माली हालत कुछ ज़्यादा ही पतली है। पूरी ज़िम्मेदारी सिर पर है और जेब खाली की खाली...बेचारे समझ ही नहीं पा रहे कि करें तो क्या करें..जुगाड़ में हैं कि अभी कोई एडवांस बुकिंग कराकर बीवी को समझा लें...सो बिल्डर से ईएमआई शेयरिंग स्कीम पर माथापच्ची कर रहे हैं। भगवान भला करें..शायद मामला फिट हो जाए ताकि वो बीवी की नज़र में हिट हो जाएं वर्ना मेरी तरह फिसड्डी ही रह जाएंगे। बहरहाल, आज ही के दिन पिछले महीने इस ब्लॉग पर मैंने अपना पहला लेख लिखा था। एक महीने हो गए, इस एक महीने में अपने इस अनुभव को कुछ इस अंदाज़ में बयां करना चाहूंगा...
यहां हर किसी की सोच है,
हर सोच का आकार है..
ये ब्लॉगर्स की दुनिया है,
दिलों में जलन नहीं..सिर्फ प्यार है..प्यार है..प्यार है..
आप सबका शुक्रिया...आप सबको नए साल की शुभकामनाएं...हम सब ब्लॉग के जरिये, इसी तरह एक-दूसरे से जुड़े रहें..एक-दूसरे का अनुभव बांटे...गम बांटे और प्यार तो बांट ही रहे हैं..बांटते ही रहेंगे। happy new year
आपका
परम
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5 comments:
भाई परमेंद्र जी, मुझे लगता है कि आपके मिश्रा जी और कुमार साहब का सारा कसूर यही है कि वे दोनों मीडिया में हैं। अब पतिदेव मीडिया में हों और मीडिया एक महीने से रट्टा लगा रहा हो कि बिल्डरों की हालत खस्ता है, पूंजी फंस गई है, उधारी देने वाले सिर पर खड़े हो गए हैं, इसलिए औने-पौने दाम पर मकान, दुकान बेचकर अपनी पूंजी निकालने में जुटे हैं। अब भला इतनी मोहक ख़बर देख-पढ़कर भी अगर अपनी छत का सपना आंखों में ना बसे, ऐसा कैसे हो सकता है। ऊपर से सरकार है, जो आए दिन रेपो और रिवर्स रेपो कम करती जा रही है। सरकार रेपो घटा रही है, तो सरकारी-गैर सरकारी बैंक भी ब्याज़ घटाने का खेल खेलने लगे हैं। पता नहीं, मिश्रा जी की पत्नी को रेपो और रिवर्स रेपो के बारे में मालूम है या नहीं, लेकिन अपनी तो डंके की चोट पर कह सकता हूं (भले ही अपनी रेपो ख़तरे में पड़ जाए)कि रेपो का खेल अपने पल्ले नहीं पड़ता। समझ में नहीं आता कि पांच-दस साल पहले ज़मीन खरीद चुके बिल्डर तीन साल पहले जो फ्लैट 10 लाख में बेच रहे थे, उसकी कीमत तीन साल में 40 लाख के पार कैसे पहुंच गई? अब उसी फ्लैट को 35 में देकर जनता पर एहसान कर रहे हैं कि देखो, कितना सस्ता कर दिया! बैंकों का खेल भी अपन की समझ से परे ही है। दो-ढाई साल पहले 7-8 परसेंट पर होम लोन की रेवड़ी बांट रहे बैंक अब 9-10 परसेंट के इंटरेस्ट रेट को "मंदी के दौर की बंपर छूट" बताने में जुटे हैं। ऊपर से लोन देने के पहले इतनी शर्तें कि कर्ज़ लेकर घर का सपना देखने वालों के पसीने छूट जाएं। कितने में घर मिलेगा, ये बात पूछने से पहले ही सवाल दाग देते हैं कि पगार कितनी पाते हो? पगार का 40-50 फीसदी से ज़्यादा ईएमआई वाला लोन देने को कोई बैंक तैयार नहीं। अब समझ में नहीं आ रहा कि 30 हज़ार रुपये महीने की पगार वाला आदमी घर खरीदे तो कहां से? बिल्डर लोगों की कृपा से एक कमरे का फ्लैट भी पीएलसी, बिजली, पानी, रजिस्ट्री और बाकी ताम-झाम जोड़ने के बाद 20 लाख से कम का नहीं है। बच्चों का भविष्य सोचकर दो कमरे की कुटिया खोजें, तो बस सपना ही देखते रहिए...। इश्तहार पढकर जिस फ्लैट को आप 25 लाख का समझते हैं, वो साइट पर पहुंचते ही 35 का हो जाता है..। (ग़लती विज्ञापन की नहीं, बल्कि उस छोटे से तारे की है, जो रेट के साथ चिपका रहता है और जिसे सबसे नीचे दोबारा दिखाकर लिख दिया जाता है- conditions apply)मिश्रा जी और कुमार साहब जैसे लोगों की मुश्किल यही है। रेट देखकर जो हिम्मत बंधती है, वो रेट के साथ छिपी शर्तों से टूट जाती है। ऐसा ही छद्म टूटता है बैंकों की ब्याज़ दर का। अब देखिए ना, सरकार जिस इंटरेस्ट रेट को रियल इस्टेट सेक्टर को मंदी की मार से बचाने का रामबाण नुस्खा बता रही है, वो इंटरेस्ट रेट 20 लाख तक के लोन के लिए है। ज़रा बिल्डरों से पूछिए ना सरकार कि दिल्ली और आसपास के किसी शहर में 20 लाख तक के दायरे में कायदे का फ्लैट है क्या? अगर ऐसा होता, तो यकीन मानिए कि उस सूरत में डीडीए के पांच हज़ार फ्लैट के लिए छह लाख लोग सपने नहीं देखते। सपने क्या, सीधे-सीधे छह हज़ार रुपये का जुआ नहीं खेलते। आपके मिश्रा जी औऱ कुमार साहब के लिए दिल में हमदर्दी है और जेहन में एक सवाल कि जब बिल्डरों के पास आज भी 30 लाख से सस्ता कोई फ्लैट नहीं है, महंगाई से त्रस्त जनता की जेब में इतना महंगा फ्लैट खरीदने के लिए पैसा नहीं है और बैकों के पास 20 लाख से ज़्यादा रकम वाले होम लोन के लिए सस्ती ब्याज़ दरें नहीं हैं, तो मंदी की मार और सरकार की चिंता का असली मतलब क्या है? अगर किसी के पास इस सवाल का जवाब हो, तो ज़रूर बता दे..।
गिरिजेश मिश्र
परमेंद्र जी! सबसे पहले तो नए साल की असीमित शुभकामनाएं आपको और आपके परिवार को , यही नहीं आने वाला हर नया साल मुबारक हो आपको । बाकी मंदी और बाज़ार के मौजूदा हालात पर आपके विचारों से मैं बिल्कुल सहमत हूं । अपने घर का सपना तो हर भारतीय के दिल का वो सपना है जो पूरा हो जाए तो दुनिया जहान की खुशियां उसे मिल गई समझो । इसकी वजह शायद ये है परमेंद्र जी कि आम हिंदुस्तानी बहुत थोड़े में गुज़ार करने में यकीन करता है । नमक से रोटी खाना है मंजूर लेकिन एक अदद छत तो हो अपनी । अब बाज़ार की उठा-पटक , बाज़ार की मंदी चाहे कितने भी अड़ंगे लगाए लेकिन आम आदमी इस सपने के साथ ही जीता है और इसको पूका करके ही दम तोड़ना चाहता है । बाकी ये यकीन मुझे है कि परवरदिगार हर हसरत चाहे पूरी ना करे लेकिन हर बंदे की ज़रुरत पूरी करने की पूरी कोशिश करता है । अल्लाह बड़ा बादशाह है परमेंद्र जी हमारा यकीन उसमें नहीं टूटना चाहिए मेरा तो यही मानना है । बाकी फिर कभी......अल्लाह हाफिज़....
(अनिल दीक्षित)
परमेंद्र जी! सबसे पहले तो नए साल की असीमित शुभकामनाएं आपको और आपके परिवार को , यही नहीं आने वाला हर नया साल मुबारक हो आपको । बाकी मंदी और बाज़ार के मौजूदा हालात पर आपके विचारों से मैं बिल्कुल सहमत हूं । अपने घर का सपना तो हर भारतीय के दिल का वो सपना है जो पूरा हो जाए तो दुनिया जहान की खुशियां उसे मिल गई समझो । इसकी वजह शायद ये है परमेंद्र जी कि आम हिंदुस्तानी बहुत थोड़े में गुज़ार करने में यकीन करता है । नमक से रोटी खाना है मंजूर लेकिन एक अदद छत तो हो अपनी । अब बाज़ार की उठा-पटक , बाज़ार की मंदी चाहे कितने भी अड़ंगे लगाए लेकिन आम आदमी इस सपने के साथ ही जीता है और इसको पूका करके ही दम तोड़ना चाहता है । बाकी ये यकीन मुझे है कि परवरदिगार हर हसरत चाहे पूरी ना करे लेकिन हर बंदे की ज़रुरत पूरी करने की पूरी कोशिश करता है । अल्लाह बड़ा बादशाह है परमेंद्र जी हमारा यकीन उसमें नहीं टूटना चाहिए मेरा तो यही मानना है । बाकी फिर कभी......अल्लाह हाफिज़....
(अनिल दीक्षित)
परमेंद्र जी,
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!
आपकी प्रोफाइल में लिखी ये पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगी.." मुझे जानने वालों का कहना है कि मैं एक शांत और शरीफ इंसान हूं, मकसद है खुद को इस काबिल बनाना कि हर किसी के काम आ सकूं।"...
इस दुनिया में जब लोग सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हैं आप दूसरो के काम आने की ख्वाइश रखते हैं ...बड़ी बात है ... मंदी की चिंता भी अपनी जगह ठीक ही है . लेकिन अनिल जी की टीप से ही एक बात कहूँगा "खुदा " पर यकीन रखा जाए . ये देश तो सदियों से राम भरोसे चल रहा है .मंदी में भी ये राम भरोसे चल ही जाएगा ...
शुभकामनायें
अमिताभ
First, Happy New Year!
Very nice.Aap kamal ke writer hai. Ek true story of ourselves.
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