नवाब पटौदी-शर्मिला टैगोर, सैफ अली ख़ान-अमृता सिंह, मोहम्मद अज़हरुद्दीन-संगीता बिजलानी, अरबाज ख़ान-मलायका अरोड़ा, सुहेल ख़ान-सीमा, शाहरुख ख़ान-गौरी, उमर अब्दुल्ला- पायल...इन तमाम चर्चित जोड़ियों में पति मुस्लिम और पत्नी हिंदू हैं। अब ज़रा इसके उलट देखिए...सुनील दत्त-नरगिस, संजय दत्त-मान्यता, किशोर कुमार-मधुबाला, ऋतिक रोशन-सुजैन..इन जानी-पहचानी जोड़ियों का ज़िक्र इसलिए क्योंकि समाज के कुछ ठेकेदारों को इस बात पर सख्त एतराज है कि हिंदू लड़कियां, दूसरे मजहब के लड़कों से मिलें..उनके साथ घूमें-फिरे.. मैंगलोर के पब में श्रीराम सेना के गुंडों ने जो कुछ किया, उसके पीछे इस संगठन की यही सोच थी। अब इन्हें कौन समझाए कि हवा का रुख कभी मोड़ा नहीं जा सकता। वेलेंटाइन्स डे का हर साल विरोध करने वाली और इस मौके पर तोड़फोड़ करने वाली शिवसेना भले ही अब थक गई हो, लेकिन कोई माना क्या? अब ये अच्छा है, बुरा है इस पर बहस भले ही चले.. हर किसी की अपनी सोच है, हर कोई किसी बात का समर्थन कर सकता है तो किसी का विरोध..ये लोकतंत्र है और हर किसी को इसका अधिकार भी है। लेकिन, सवाल है अपनी बात मनवाने के लिए अख्तियार किए गए तरीके का... भगवान श्रीराम के नाम पर सेना बनाकर गुंडागर्दी करके तो ये लोग भगवान के नाम को भी बदनाम कर रहे हैं, जिसे कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। आपको कोर्ट की एक अहम टिप्पणी के बारे में याद कराता चलूं...किसी आपराधिक मामले में एक ऐसे शख्स को दोषी करार दिया गया, जिसका नाम एक महापुरुष के नाम पर था। इसपर कोर्ट ने कहा कि कम-से-कम इस तरह के कृत्य करने से पहले वो नाम का ख्याल तो रख लेता। भगवान राम ने कभी किसी महिला पर हाथ नहीं उठाया और ना ही उनकी सोच इतनी संकीर्ण थी कि किसी के दूसरे के साथ घूमने-फिरने पर डंडे फटकारते फिरें। क्या ये भी याद दिलाने की ज़रूरत है कि रावण को मारकर अगवा की गईं सीता जी को लंका से अयोध्या लाने वाले भी वही थे। और इस संगठन की बेशर्मी तो देखिए कि पहले तो लड़कियों को बालों से घसीटकर पीटी, थप्पड़ चलाए और अगले दिन ये भी कहा कि ये सब छोटी-मोटी घटना है। जनाब, आपकी बहनों के साथ ऐसा हुआ होता तब क्या कहते आप? और आप क्यों इतने फिक्रमंद हो रहे हो, उनका ख्याल रखने के लिए उनके घरवाले हैं ना ? अगर वो कोई ऐसी हरकत कर भी रहे हों, जो सार्वजनिक स्थल पर नहीं करनी चाहिए तो पुलिस है ना..सौ नंबर घुमाइए, शिकायत कीजिए.. आपको कानून हाथ में लेने की इजाजत किसने दी ? इन संगठनों के कर्ता-धर्ता अपने फायदे के लिए युवाओं के जेहन में ज़हर घोल रहे हैं, जिनसे इन्हें बचाना होगा। वर्ना हिंदुस्तान में तालिबानी संस्कृति पनपते देर नहीं लगेगी। गुंडातंत्र पर लगाम लगाने की ज़रूरत है। और पंजाब के तरनतारन के लोगों को कौन समझाए, जिन्होंने एक पति-पत्नी को इसलिए मार डाला क्योंकि उन्होंने घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी। अरे भाई... किस संस्कृति के नाम पर ये सबकुछ कर रहे हो..क्या देश में पहले कभी लड़कियों ने अपनी मर्जी से शादी नहीं की। हमारे देश में तो वैसे भी स्वयंवर की परंपरा रही है और आदिवासी समाज में तो आज भी लड़कियां अपनी पसंद के वर को जीवनसाथी चुनती हैं। तो सोच बदलिए और जो भटके हुए हैं, उनमें भी नई सोच भरिए। वक्त बदल रहा है, जमाना बदल रहा है, सोच को भी बदलने की ज़रूरत है क्योंकि तरक्की की राह में रोड़ा बनी तालिबानी सोच चार कदम आगे बढ़ रहे देश की टांग दो कदम पीछे खींच सकती है।
आपका
परम
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1 comment:
निश्चित ही डंडे के जोर पर अपनी बात मनवाना सर्वथा ग़लत है, ख़ास तौर पर उनलोगों के लिए जो हिंदू धर्म के पहरुए बनने का दंभ भरते हैं.क्योंकि हिंदू धर्म में विचार स्वातन्र्त्य की छूट है.लेकिन अपसंस्कृति और पश्चिम के अन्धानुकरण से बचने के भी उपाय होने चाहिए.
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