Saturday, January 17, 2009

घर के घोटालेबाज़

एक कहावत बहुत प्रचलित है...घर बसा नहीं, लेकिन लुटेरे पहुंच गए। अचानक इसका ख्याल आया, जब दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए के फ्लैट्स के ड्रॉ में घोटाले की ख़बर देख-पढ़ रहा था। वो तो भला हो मीडिया का, जो हो-हल्ला मचा तो सरकार और कोर्ट को भी दाल में कुछ काला नज़र आया और जब जांच आगे बढ़ी तो पूरी दाल ही काली नज़र आ रही है। जो सामने दिख रहा है, उससे लग रहा है कि अफसर, डीलर सब घोटाले में शामिल हैं। पहले एससी कैटेगरी वाले फ्लैट्स में घपले का शक था, अब जनरल कैटेगरी भी लपेटे में है। हालात ये है कि पूरा ड्रॉ भी रद्द हो सकता है। जिन्हें फ्लैट नहीं मिला वो पहले किस्मत को कोस रहे थे, अब डीडीए को दोष दे रहे हैं। जिन्हें किस्मतवाला होने के सर्टिफिकेट के तौर पर फ्लैट मिला वो भी किस्मत को कोस रहे हैं कि पता नहीं कहीं ड्रॉ रद्द हो गया तो दुबारा किस्मत मेहरबान होगी भी कि नहीं...हालात वैसे ही हैं जैसे रनआउट का फ़ैसला जब थर्ड अंपायर के पास पेंडिंग रहता है तो फिफ्टी-फिफ्टी का विज्ञापन नज़र आता है। ये तो है दिल्ली की बात...लेकिन, मुंबई भी कम नहीं है। यहां भी सस्ते सरकारी फ्लैट के लिए इन दिनों फॉर्म बिक रहे हैं..कीमत है सौ रुपये, लेकिन कुछ लोग इसे हज़ारों में भी बेच रहे थे। अब भला सौ रुपये के फॉर्म हज़ारों में लोग खरीद क्यों रहे थे, तो इसका जवाब ये है कि इन फॉर्मों के साथ फ्लैट मिलने की गारंटी भी बेची जा रही थी। अब ये तो पता नहीं कि ये महज ठगी थी या यहां भी दिल्ली की तरह अंदर से सेटिंग थी और हज़ारों में फॉर्म बेचना इस डील की पेशगी मात्र थी। लेकिन, चौंकिए मत...घर के घोटालेबाज़ सिर्फ महानगरों तक ही सिमटे नहीं हैं। हां, चूंकि ये महानगर के मामले हैं, इसलिए इनपर सबकी तवज्जों ज़रूर पहले और ज़्यादा जाती है। ..सरकार की एक योजना है, इंदिरा आवास योजना..बेहद गरीब तबके के लोगों को भी घर नसीब हो, इसके लिए उन्हें आर्थिक मदद दी जाती है। अब गरीब तो गरीब ठहरे, बाबुओं तक पहुंच नहीं सकते, इसलिए दलालों की चिरौरी करते हैं। ये दलाल मुखिया जी से लेकर बाबुओं तक बेघर गरीबों की लिस्ट पहुंचाते हैं और ज़ाहिर सी बात है कि वो समाजसेवा कतई नहीं करते। बाक़ायदा कमीशन काटकर चेक थमाते हैं। तो बताइए कहां नहीं हैं घर के घोटालेबाज़। वैसे उन लोगों को भी खुश होने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं, जो डीडीए, म्हाडा या इंदिरा आवास योजना जैसे पचड़ों से दूर रहकर आशियाना बसाना चाहते हैं। ज़रा सोच-समझकर बिल्डर से बात कीजिएगा क्योंकि सुपर एरिया-कारपेट एरिया, पीएलसी वगैरह का चक्कर घनचक्कर से कम नहीं और वो भी ज़्यादा खुश न हों, जो ज़मीन खरीदकर या अपनी जमीन पर घर बनवा रहे हैं क्योंकि ठेकेदार से बनवाया तो भी फंसे और खुद बनाया तो भी...वो ऐसे कि सीमेंट, छड़, कांच, प्लम्बर, इलेक्ट्रिक फिटिंग जैसे मामले गैरअनुभवी लोगों के छक्के छुड़ा कर ही दम लेते हैं। और ये हालात हर जगह है..यूं ही नहीं कहते कि भारत विविधता में एकता का देश है। लेकिन, हिम्मत मत हारिए..क्योंकि घर तो सबका सपना है और ज़िंदगी में और कुछ हो या नहीं, सपना ही तो अपना है।
आपका
परम

2 comments:

आलोक साहिल said...

behatarin sir ji......
ALOK SINGH "SAHIL"

Udan Tashtari said...

सपना ही तो अपना है।

-बिल्कुल सही.