बदलाव वक्त का तकाजा होता है और बदलाव वक्त के साथ ही आता भी है, लेकिन ये छोटा सा शब्द अमल में लाना कभी भी आसान नहीं होता। ज़रा सोचिए कि कोई शराबी हर दिन अपने परिवार से, दुनिया से शराब पीने के लिए तमाम लानत सुनता है, हर दिन नशा उतरने पर अपनी आदत को लेकर पछताता है और हर दिन फिर भी शराब पी लेता है। और शराब ही क्यों सिगरेट, पान, गुटखा, तंबाकू जैसी लतों के शिकार भी चाह कर खुद को एकदम से नहीं बदल पाते। आदत बदलनी आसान नहीं..अगर आप पीयर्स साबुन लगाते हैं और किसी दिन ये नहीं मिल पाता तो लक्स देखकर ही आपकी भौंहें चढ़ जाती है या फिर सुबह-सुबह आपके घर अखबार वाला किसी दिन टाइम्स की जगह हिंदुस्तान फेंक जाए तो आप पेपर पढ़ना ही नहीं चाहते। या फिर लीफ की चाय की लत हो और किसी दूसरी पत्ती वाली चाय मिल जाए तो नहीं पीते..मुश्किल है ना बदलाव..आप देर से उठने के आदी हों और किसी दिन किसी ज़रूरी काम से सुबह उठना हो तो रात भर नींद ही नहीं आती..ऐसे में बड़े बदलावों के बारे में सोचिए कि कैसे वो मुमकिन हो पाए? तभी तो क्रांति के बारे में कहा जाता है the process of revolution is evolutionary, but the effects are revolutionary. रूसी क्रांति हो या फिर फ्रांसीसी या फिर चीनी या भारत का स्वतंत्रता संग्राम.. और क्रांति सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र में नहीं..बाल विवाह रोकने, विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए भी सोच को बदलने की क्रांति हुई। आज अरब से ऊपर की आबादी अपनी धरती की पैदावार पर पल रही है तो इसके पीछे भी हरित क्रांति है। बदलाव की बात इसलिए जेहन में अचानक आई क्योंकि दुनिया जिसे अपना मुखिया मानती है और जो खुद को दुनिया का मुखिया कहता है, उसके नए मुखिया ने अपने चुनाव को बदलाव का चुनाव करार दिया है। जी हां, बात अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की...
अमेरिका को बदलने के नारे और सपने के साथ ओबामा राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ के बाद उनके पहले ही भाषण में मंदी की चुनौती मुख्य मुद्दा रहा। उन्होंने फिजूसखर्ची रोकने पर ख़ास ज़ोर दिया और पद संभालते ही पहला काम ये किया कि ह्वाइट हाउस के कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर डाली। लेकिन, शपथ के तामझाम में अमेरिका ने करोड़ों फूंक डाले। काश अमेरिका और दुनिया को बदलने के नारे को फिजूलखर्ची की परंपरा को बदलने के तौर पर ओबामा मिसाल पेश करते। ख़ैर..बदलाव तो फिर भी दिखा, जब ओबामा ने आतंकवाद पर पाकिस्तान को सख्त नसीहत दे डाली। अबतक दुनिया को ये समझ में नहीं आ रहा था कि जिस मुल्क में आतंकवाद और आतंकवादियों को पनाह मिलती रही है, जो मुल्क आतंक का कारखाना है, वही आतंकवाद के खिलाफ दुनिया की जंग में अमेरिका का सबसे बड़ा साथी क्यों बना हुआ है। लेकिन, बदलाव पाकिस्तान की ओर से भी दिखा..ऐसा कि ओबामा के भी होश फाख्ते होते दिख रहे हैं। पाकिस्तान ने चीन को अपना नेता होने का खुलेआम ऐलान कर नया खेल कर दिया है और बाक़ी किसी को पसंद आए या नहीं, कम से कम भारत को तो ये खेल कतई नहीं पसंद आ रहा। सो संतुलन की खातिर हमने अभी भी अमेरिका की पूंछ पकड़ रखी है। और बदल लालूजी भी गए हैं। जापान गए थे तो खैनी थूकने में काफी परेशानी हुई..अब लौटकर सबको खैनी छोड़ने की समझाइश पेश कर रहे हैं। दूसरे के घर के सामने कचड़ा फेंकने को नॉनसेंस बता रहे हैं। और सबसे ज़्यादा तो बदलाव हम हिंदुस्तानियों में है। अब देखिए ना..मंदी में बाहर वाले बेचारे खर्च में कटौती करने पर मजबूर हैं, लेकिन हमें तो बचपन से ही यही घुट्टी मिली है कि जितनी चादर हो, उतनी ही पांव पसारे..और हम करते भी यही है। जेब भारी हो तो छककर दारू भी पी लेते हैं और अगले दिन फाका भी हो तो गम नहीं करते। रात तो रात, दिन में भी सड़क किनारे दारु पीकर लेटे लोगों का नज़ारा यहां आम है। तो वक्त के मुताबिक हमसे ज्यादा भला कौन बदल सकता है। और सच तो ये भी है कि हमारी नज़र बदलते भी देर नहीं लगती। जिसके साथ बड़े होते हैं, वही भाई बदल जाता है या यूं कहें कि उसके बारे में हमारा नजरिया बदल जाता है। जो दोस्त हर वक्त साथ होता है, स्टेटस बदलने के साथ ही उसका साथ बदल जाता है। ठीक ही है...बदलाव की बयार तो बहती ही है, अब कोई चाहे तो उसके साथ बहे या नहीं...
आपका
परम
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2 comments:
बहुत बढ़िया लिखा है
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
ओबामा पर मैंने भी अपने ब्लॉग में लिखा है लेकिन जो पहलू छूट गया था वो आपने यहाँ अपने आर्टिकल में पूरा किया है / आपके लिखने की ये शैली वाकई लाजबाब है /
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