क्या मुस्लिम लड़कियों को लड़कों के साथ पढ़ने का अधिकार नहीं है? आपको सवाल अटपटा लग रहा होगा, लेकिन आपको ये ख़बर और भी अटपटी लगी होगी कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड ने इसपर पाबंदी लगा दी है। वजह क्या बताई गई है, ज़रा ये भी सुन लीजिए...'इस्लाम में पर्दा काफी अहम है और सह-शिक्षा यानी को-एजुकेशन से बेपर्दगी को बढ़ावा मिलता है, जो शरीयत के खिलाफ़ है।' चलिए रहम ये किया गया है कि तहतानिया यानी पहले से लेकर पांचवें क्लास और फौकानिया यानि छठे से लेकर आठवें क्लास तक की पढ़ाई साथ-साथ करने को बंदिशों से मुक्त रखा गया है वर्ना ना जाने कितनी बच्चियां अपना नाम तक लिखना नहीं सीख पातीं। कहने की ज़रूरत नहीं कि मदरसों में अभी भी बड़ी तादाद में मुस्लिम बच्चियां तालीम हासिल करती हैं क्योंकि एक तो इनमें पढ़ाई का खर्च कम आता है और दूसरे कि रूढ़िवादी ख्यालात के लोगों को मदरसों पर यकीन भी ज़्यादा होता है। और उत्तर प्रदेश में तो मुस्लिम आबादी भी ज़्यादा है तभी तो यहां करीब उन्नीस सौ मदरसे चलते हैं। इनमें कुल सात लाख बच्चे तालीम हासिल करते हैं। आवाज़ मुस्लिम बुद्धिजीवियों की ओर से भी इस पाबंदी के खिलाफ उठ रही है, बिल्कुल उसी तरह जैसे तरह-तरह के फतवों को लेकर उठती रही है। लेकिन, सवाल ये भी उठता है कि क्या कभी सोच नहीं बदलेगी? आखिर कबतक ऐसा चलता रहेगा? क्या अपने पैरों पर खड़े होने का हक़ इन मासूम लड़कियों को नहीं है? सोचने वाली बात ये है कि अगर लड़कों के साथ पढ़ने से बेपर्दगी को बढावा मिलने का डर कुछ कठमुल्लाओं को सता रहा है तो उनके पढ़-लिखकर नौकरी करने या व्यवसाय करने पर वो क्या ख़ाक तैयार होंगे। हर बात में मजहब को शामिल करना किस हद तक उचित है? ज़रा सोचिए
आपका
परम
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7 comments:
विचारणीय पोस्ट है।
अरे भाइया कहे फ़िक्र करते हो, काग्रेस जिन्दा वाद वो खुद ही सम्भाल लेगी अपने वोटरो को
बहुत सही बात कह रहे हैं!
आज इक्कीसवी सदी में भी ऐसी सोंच.....क्या कहा जाए ?
आपने जिस विषय पर लिखा हैं वो वाकई महत्वपूर्ण है / ये समाज के एक बड़े तबके से जुड़ा मसला है / मदरसा शिक्षा को आधुनिक तकनीकी शिक्षा मुहैया करनी होगी ताकि एक मुसलमान ईमान धरम के रास्ते पर चलकर सच्चा इंसान तो बने ही जिंदगी की दौर में सामाजिक- आर्थिक तरक्की भी कर सके / इन सब मसलो पर लोग दबी जुबान से बात करते हैं और लिखना नहीं चाहते /
इन्ही लोगों की तानाशाही से बचने के लिए ही तो एक लड़की का स्वावलंबी होना अधिक आवश्यक हो गया है। ये लोग पहले लड़कियों को पढने लिखने नही देते फिर पूरी ज़िन्दगी गुलाम की तरह रखते हें। लड़की क्या कर सकती है शिक्षा के अभाव में। बाहर भी तो दरिन्दे बैठे होते हें!
लडकियाँ यदि बचपन से लडकों के साथ पढेंगी तो किशोर और युवा होते होते लड़के लडकों के बीच सहज व्यवहार बना रहेगा. एक दूसरे से सामान्य तरीके से व्यवहार करने की समझ पैदा होगी.
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