कार्ड बड़े काम की चीज है, ताश खेलते वक्त काम का पत्ता हाथ लग जाए तो खिलाड़ी का चेहरा जीत की खुशी से चमक उठता है। लेकिन, प्लेइंग कार्ड के अलावा एक और कार्ड को भी हम पहचानने लगे हैं। अलग-अलग चैनलों पर सजी-संवरी युवतियों के हाथ में अक्सर दिखने वाले ये कार्ड तो इतने दमदार होते हैं कि मैच से पहले ही जीतने वाली टीम का नाम बता देते हैं..चुनाव से पहले ही किसकी सरकार बनेगी ये भी बता देते हैं। इस कार्ड को टैरो कार्ड कहा जाता है और इसे बताने वाले हमारा-आपका भविष्य बताकर अपना भविष्य बना रहे हैं। लेकिन, एक कार्ड ऐसा भी है, जो सियासी दलों और नेताओं के इस्तेमाल में आता है। इसे कहते हैं सेक्यूलर कार्ड...सबसे पहले इसे कांग्रेस ने लपका..आज़ादी की लड़ाई के दौरान ये कार्ड जिन्ना साहब को पसंद नहीं आया तो उन्होंने पाला बदल लिया, कार्ड कांग्रेस के ही हाथ रहा। बदलते वक्त के साथ इस कार्ड की कई जेरॉक्स कॉपी करा ली गईं। तबसे ये कार्ड हमारे देश में सियासी दोस्त और दुश्मन तय करते हैं। लेफ्ट के पास भी इसकी एक कॉपी है, सो पिछली बार कांग्रेस के कार्ड से इसका मिलान हुआ और केंद्र में सरकार बन गई। साढ़े चार साल की सत्ता के बाद जब लेफ्ट का मोहभंग हुआ तब भी इसी कार्ड की दूसरी कॉपी ने सरकार बचाई। याद कीजिए..विश्वासमत में कैसे मुलायम सिंह की पार्टी कांग्रेस के पाले में अचानक से टपक गई थी। इससे पहले जब एनडीए की सरकार बनी थी तो बीजेपी के कई साथी बीजेपी के साथ हो लिए थे, वो इसलिए कि बीजेपी बिना इस कार्ड के भी दमदार दिख रही थी। लेकिन, इस कार्ड की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि उन्होंने अपना कार्ड बीजेपी को नहीं दिया और ना ही इसकी कॉपी ही करने की इजाजत दी। कार्डधारक दूसरी पार्टियों ने जब ये पूछा कि बीजेपी के पास तो ये कार्ड था ही नहीं तो हाथ मिलाने का मतलब ये है कि उसके साथी दलों के कार्ड पर भी कालिख है। ऐसे में समाधान ये निकाला गया कि जो प्रधानमंत्री बनेगा यानी वाजपेयी, वो भले ही बिना इस कार्ड वाली पार्टी में है, लेकिन कार्ड पाने की पूरी योग्यता उसमें है। लिहाजा वाजपेयी प्रधानमंत्री भी बन गए। अब आडवाणी जी के मन में मलाल उठा सो वो सरहद पार जाकर जिन्ना साहब की मज़ार पर मत्था टेक कर इस कार्ड की दावेदारी ठोक दी। बदकिस्मती से पासा उलटा पड़ा.. कार्ड तो फिर भी नहीं मिला, फजीहत ऊपर से हो गई। हाल ही में जब ये कार्ड लेकर मुलायम सिंह कल्याण से मिले तो कांग्रेस को जुकाम हो गया। सीधा सवाल दागा..आपके पास तो कार्ड है, कल्याण के पास नहीं और ना ही हम कल्याण को ये कार्ड हासिल करने देंगे। अब एक बार फिर चुनाव आ गए हैं। बीजेपी फिर राम नाम के सहारे अपनी नैया चुनावी बैतरणी में उतारने का ऐलान कर चुकी है। राजनाथ से लेकर आडवाणी तक मंदिर-मंदिर, राम-राम जप रहे हैं। साथी दल आगाह कर रहे हैं, अपना तो कार्ड नहीं है, हमारा क्यों छिनवाने पर तुले हो...और सोनिया जी तो सीधा कह ही रही हैं कि राम के नाम पर राजनीति करने वाले आतंकवाद का सामना नहीं कर सकते...देश नहीं चला सकते। जाहिर है, अगले चुनाव और अगली सरकार में फिर इसी कार्ड की अहम भूमिका होने जा रही है। और चलते-चलते आपको बता दें कि सात समंदर पार भी चलता है ये कार्ड ब्लिकुल वीज़ा कार्ड की तरह...याद कीजिए...ओबाम ने शपथ लेते समय कैसे कहा था...ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और हिंदू सभी अमेरिका में समान हैं...ये अलग बात है कि शपथ उन्होंने फिर भी बाइबिल हाथ में लेकर ली थी...खैर, उनका मसला..वो जानें...हमें और आपको तो ये तय करना है कि वोट पर इस कार्ड का क्या असर होगा..वही सेक्यूलर कार्ड...
आपका
परम
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3 comments:
बहुत सुंदर लिखा आप ने इस मुये कार्ड पर.
धन्यवाद
कितने सुंदर तरीके से चीजों को आपने उठाया है,आनंद आ गया।
वाह परमवाणी !
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