पाकिस्तान ने मुंबई हमले पर आखिरकार पहला जवाब दे दिया...सरकार को लगा भागते भूत की लंगोट भली..सो तारीफ भी की। हालांकि पाकिस्तान ने अपने जवाब के साथ भारत पर तीस सवाल भी दागे और ये भी कहा कि उसके यहां तो साज़िश का कुछ ही हिस्सा रचा गया बाक़ी तो जो हुआ, वो भारत जाने मसलन आतंकियों को सिम भारत में कैसे मिले? मुंबई में उसकी मदद किसने की वगैरह-वगैरह...यूपीए सरकार पर निशाना साधते-साधते नरेंद्र मोदी भी दो दिन पहले पाकिस्तानी अल्फाज बोल गए थे और इस बार तो मुंबई पुलिस कमिश्नर की ही जुबान फिसल गई। उन्होंने देखा कि रहमान मलिक के बयान के बाद प्रणब, चिदंबरम, रविशंकर, आडवाणी सब ही बोल रहे हैं तो वो भी बोल पड़े। कह डाला कि हां स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी आतंकियों को हमले में मदद दी और सोलह की तो तलाश भी हो रही है। अरे हसन गफूर साहब..थोड़ा संयम रख लेते...टीवी पर आने का इतना ही शौक था तो हमले वाले दिन कुछ कर दिखाते...क्यों देश की कूटनीतिक कोशिशों को शहीद करने पर तुले हैं। खैर..कुछ ही देर बाद उनका अगला बयान आया कि नहीं, किसी ने आतंकियों को स्थानीय स्तर पर मदद नहीं दी..लेकिन, तरकश से निकले तीर की तरह जुबान से निकली बात भी कहीं वापस आती है। पहले अंतुले फिर मोदी और अब गफूर...अगर बोलने का इतना ही शौक है तो पहले अपने पद की गरिमा और बयान की अहमियत तो समझ लेनी चाहिए वर्ना तो अपनी फजीहत तो करा ही रहे हैं, देश की कूटनीति को भी जाने-अनजाने पाकिस्तानी भाषा बोलकर बैकट्रैक पर डाल रहे हैं। वैसे ही ज्यादा और बेतुका बोलने की बीमारी काफी खतरनाक है। जिसे देखिए बोले ही जा रहा है...मुतालिक लड़के-लड़कियों को साथ देखकर शादी कराने या राखी बंधवाने की भाषा बोल रहे हैं तो रेणुका पब भरो आंदोलन का नारा बुलंद कर रही हैं। एक एनजीओ गुलाबी चड्ढी मुतालिक को भेजने का नारा बुलंद कर रहा है तो अमर सिंह को समझ ही नहीं आ रहा कि सीबीआई की जांच को लेकर कांग्रेस को बोलना है या जांच एजेंसी को...लेकिन, हमें-आपको बोलना चाहिए, ऐसे बोलों के खिलाफ...और वो भी खुलकर....वैसे लालू जी के अंतरिम रेल बजट पर भी सब बोल रहे हैं। बिहार में आरजेडी जय जयकार कर रही है तो विपक्ष इसे वोट बैंक का बजट बता रहा है। लेकिन, जनता तो खुश है क्योंकि मंदी में किराए कुछ तो घटे ही, लालू ने बैलेट के लिए बुलेट ट्रेन चलाने का सपना भी दिखा दिया...
आपका
परम
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2 comments:
ये सब मीडिया का महात्म है...कैमरा देखा नहीं और-क्या नेता, क्या अफसर, क्या पब्लिक सब बोलने लगते हैं। खास बात ये नहीं कि शायद ही किसी को पता होता कि बोलना क्या है। वैसे इश मामले में लालू उस्ताद हैं। और इसलिए उन्हें देखते ही मीडिया दौड़ पड़ता है उनकी बात सुनने।
अंधो मै काना राजा, बस यही हाल हो रहा है आज.
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