Sunday, February 15, 2009

हंसिए मत...सोचिए

दो दिन पहले एक ख़बर काफी चर्चा में रही थी। ब्रिटेन में एक तेरह साल का बच्चा बाप बन गया था। चाय की दुकान पर जब किसी ने चर्चा छेड़ी तो एक मित्र ने जमकर ठहाका लगाया। पता नहीं क्यों, मैं ठहाका नहीं लगा सका क्योंकि दिमाग में ख्याल उस बच्चे का आया, जिसकी मां पंद्रह साल की और पिता तेरह साल का है। सोचा, अगर इनके परिवार ने साथ नहीं दिया तो क्या भविष्य होगा, उस बच्चे का ? अच्छा-ख़ासा कमाने वाला आदमी आज की तारीख में पूरी प्लानिंग के बाद शादी करता है और फिर कुछ जमा-पूंजी जुटाने के बाद बच्चे के बारे में सोचता है...और दो बच्चों के नाम से तो हवा ही निकल जाती है..ऐसे में ये क्या हो रहा है? फिक्र ब्रिटेन की सरकार को भी हो रही है। बाक़ायदा वहां की संसद में चिंता जताई गई, मंत्री को बयान देना पड़ा। लेकिन, फिक्र भारत में भी कम नहीं है। क्या हो शादी की उम्र...इस सवाल को लेकर दिल्ली में हाईकोर्ट की एक फुल बेंच परेशानी में है और केंद्र सरकार भी पसोपेश में है। मामला एक ऐसे जोड़े की शादी का है, जिसमें दोनों नाबालिग हैं। पंद्रह साल की उम्र में इन्होंने शादी कर ली। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने लड़की को बच्चे माफ कीजिएगा ..पति के साथ रहने की इजाजत भी दे दी। लेकिन, घरवालों की याचिका पर दो सदस्यों की पीठ ने पहले फ़ैसले को पलट दिया। अब लड़की की उम्र सत्रह साल है और वो एक महीने बाद मां भी बनने वाली है। ऐसे में कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि शादी की उम्र क्या होनी चाहिए। सरकार की ओर से इस मामले में ये दलील दे दी गई कि आजकल तो 15 में बच्चे मैच्योर हो जाते हैं, लिहाजा इन्हें साथ रहने की इजाजत मिल जानी चाहिए। वैसे शादी की उम्र तो 18 और 21 है ही। कोर्ट नाराज़ है, सरकार से ठोस तर्क देने को कहा गया है। वैसे एक और मामला दिल्ली का ही आया था। एक नाबालिग जोड़े ने शादी कर ली थी और जब उन्हें बच्चा हुआ तो एक दूसरी महिला को तबतक पालने के लिए सौंप दिया था, जबतक वो बालिग नहीं हो जाते। जब बालिग हुए तो बच्चा मांगने गए, लेकिन पालने वाली मां ने इससे इनकार कर दिया। लंबा बवाल चला, लेकिन बच्चा जन्म देने वाली मां को ही मिला। तब भी ऐसे ही सवाल उठे थे। सवाल ये है कि अगर आज भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं तो हम किस बूते गुज़रे ज़माने की बालविवाह प्रथा को उलाहना दे सकते हैं। दरअसल, ज़िंदगी चलाने की जद्दोज़हद में हो रही वक्त की कमी से हम अपने बच्चों पर ध्यान ही नहीं दे पा रहे...नतीज़ा सामने है। उन्हें जो ठीक लगता है, वो करते हैं क्योंकि सही सुझाव देने वाला उन्हें मिलता ही नहीं। ज़ाहिर सी बात है...कम उम्र में सेक्स को लेकर आकर्षण कुदरती है, लेकिन सेक्स को लेकर सही सोच तो कुदरती नहीं, उसे तो समझना होगा...समझाना होगा। वर्ना आज हम दूसरों के किस्से सुनकर मज़ा लेते हैं, कल घर में यही किस्सा देखकर रोएंगे।
आपका
परम

3 comments:

Vinay said...

जो भी हो हमें अपने संस्कार नहीं त्यागने चाहिए!

अनूप शुक्ल said...

ज़िंदगी चलाने की जद्दोज़हद में हो रही वक्त की कमी से हम अपने बच्चों पर ध्यान ही नहीं दे पा रहे. सही बात है!

hem pandey said...

'आज हम दूसरों के किस्से सुनकर मज़ा लेते हैं, कल घर में यही किस्सा देखकर रोएंगे।' -सही बात.