क्य़ा बात थी दिल में तेरे,
जो तुम ना कह सके..
क्या दर्द था दिल में तेरे,
जो तुम ना सह सके..
हालात की दरिया में,
बहता है ये जहान,
वो क्या हुआ कि संग इसके,
तुम ना बह सके..
मझधार में फंसे हो तुम,
हमको ये थी ख़बर..
तभी तो तेरे साथ था,
पर तुम थे बेख़बर..
मत भूल कि ये रात भी,
अब जाएगी गुज़र..
अब तो कह दो वो बात,
जो अब तक ना कह सके..
आपका
परम
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7 comments:
सुन्दर कविता। धन्यवाद ।
बहुत सुंदर रचना .....आपने बहुत खूब लिखा है
मझधार में फंसे हो तुम, हमको ये थी ख़बर.. तभी तो तेरे साथ था,....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
marmik sundar bhav
हर शेर क़ीमती है भाई
दिल तब टूटा था...
...दर्द अब हो रहा है
ब्लॉग पर लिख कर क्या होगा ?
दवा तो कब की गल चुकी है...
सुंदर रचना है....
बहुत अच्छे भावपूर्ण शब्द....सुंदर रचना...
नीरज
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