भला हो चुनाव का, जो ऐन मंदी के मौके पर आ रहे हैं, वर्ना ना जाने हमारा-आपका क्या हाल होने वाला था। जी हां..सरकार भले ही ये दावा कर रही है कि विकास दर साढ़े सात फीसदी होने का अनुमान है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में विकास दर महज 5.1 फीसदी आंक कर खतरे की घंटी बजा दी है। अब अंदरखाने की तो ख़बर यही है कि असर जो पड़ना है सो चुनावों के बाद ही पड़ना है, क्योंकि तबतक सरकार इसे संभालने के लिए चुनावी तौर पर मजबूर है। अब देखिए ना...गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया यानी किसान अपने गेहूं को पहले से ज़्यादा दाम पर बेच सकेंगे। रसोई गैस की कीमत तो पच्चीस रुपये प्रति सिलेंडर घटा ही दी गई है, भले ही इसपर दी जा रही सब्सिडी का बोझ सरकार पर और बढ़ गया है। और लगे हाथों पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी घट गए हैं। यही नहीं हवाई जहाजों के टिकट भी सस्ते हो गए हैं..खासकर इकॉनॉमी क्लास के...इससे पहले, होम लोन के रेट गिर ही चुके हैं और सिमेंट , सरिया के दामों में भी कटौती की जा चुकी है। सुनते हैं एक और राहत पैकेज आने वाला है...अब छोड़िए ये बहस कि ये सब अभी ही क्यों हो रहा है...इसमें उलझने दीजिए नेताओं को, पार्टियों को..आप तो बस ये सोचिए कि एक बार चुनाव हो गए तो फिर महंगाई पूरे शबाब पर होगी इसलिए इन तोहफों को सहेजकर रखिए..जितना बच जाए, बचाते चलिए..बूंद-बूंद से घड़ा भरने का वक्त आने ही वाला है क्योंकि हालात बता रहे हैं कि मंदी जल्दी जाने वाली नहीं है। और मंदी की मार पड़नी शुरू हो चुकी है ये तो हम सब जानते ही हैं। अब सरकारी बाबुओं के तो चुनावी मौसम की वजह से मंदी में भी बल्ले-बल्ले हैं, लेकिन प्राइवेट कंपनियों में काम करने वालों के होश उड़े हुए हैं। हर दिन ये सोचते हुए दफ्तर आते हैं कि कहीं जाते ही इनहाउस मेमो न नज़र आ जाए और हर दिन हांफते-कांपते घर जाते हैं कि पता नहीं अगले दिन लौटने पर नौकरी रहेगी या नहीं...मज़ाक नहीं, सच में हालत यही है। कॉस्ट कटिंग की मार वाकई जबर्दस्त पड़ रही है। सबसे मुश्किल तो ये है कि जहां पहले से काम कर रहे हों, अगर वहीं से हटा दिए गए तो नई जगह में भला इस मौसम में रखेगा कौन? इसलिए अब वो चर्चा जो हर दफ्तर में इस वक्त यानी जनवरी खत्म होने के वक्त होती थी, वो भी बंद है। वही चर्चा..प्रोमोशन की, इन्क्रीमेंट की...अब तो बस बात यही हो रही है कि नौकरी तो बच जाएगी ना यार? खुदा ना करे..कहीं वाकई वो वक्त आ गया तो क्या होगा..और दिलासा कौन किसको देगा, जब सबकी हालत एक सी होगी..तभी तो कह रहा हूं कि भाई, कुछ बचाते चलो...सरकारी तोहफे सहेजते-समेटते चलो..बुरे वक्त में काम आएंगे...वैसे कुछ आइडिया हो तो मुझे भी बताइएगा ज़रूर क्योंकि सुनते हैं एक आइडिया ज़िंदगी बदल देती है...
आपका
परम
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2 comments:
बहुत सुंदर, लेख लिखा आप ने ,नेताओ की अच्छी पोल खोली.
धन्यवाद
Hundred percent true Param ji! Other way we can call "Job fear era"
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