#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_3
#सुप्रभात..नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वो मैंडेट के मुताबिक काम करेंगे न कि आलोचनाओं के मुताबिक। अब कौन उन्हें समझाए कि 243 विधायकों वाली विधानसभा में महज 71 यानी एक तिहाई से भी कम विधायक वाली पार्टी के मुख्यमंत्री को जनादेश की बात कहां से शोभा देती है? कोई नेता अपनी करतूतों को लेकर सवालों में घिरता है तो जनादेश की दुहाई देने लगता है। नीतीश जी ये तो बताएं कि बिहार के जनादेश में ये कहां लिखा था कि सरकार अपराधियों को रिहा कराएगी? चंदा बाबू (जिनके दो बेटों को तेजाब स्नान कराया गया, तीसरे को गोली मारी गई) का बयान है-शहाबुद्दीन की रिहाई हमारे लिए मौत की सज़ा से कम नहीं है, क्या जनादेश में नागरिकों की सुरक्षा नहीं होती? वैसे नीतीश ने शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर पूरी तैयारी कर रखी थी, बिल्कुल तय स्क्रिप्ट के मुताबिक शहाबुद्दीन ने नीतीश को परिस्थितियों का सीएम बताया, शराबबंदी कानून पर घेरा, ताकि नीतीश अपने वोटबैंक और समर्थकों को ये संदेश दे सकें कि देखिए मेरे खिलाफ कैसे दुष्प्रचार हो रहा है कि मैंने शहाबुद्दीन को केस कमज़ोर करके छुड़वाया। मैंने तो उसे जेल भिजवाया था, अब अगर अदालत ने ही छोड़ दिया तो मैं क्या कर सकता हूं? क्या हम जज हैं? हम छुड़वाए होते तो क्या वो जेल से छूटते ही हमको ही गरियाने लगता? अब बिहार की जनता की समझ का अंदाज़ा तो दुनिया जानती ही है, इसलिए सुशासन बाबू का एजेंडा सेट है। कौन पूछ सकता है उनसे कि एक मामले में चलिए वो छूट भी गया, क्या 63 में से एक भी मामले में उसे फिर से जेल नहीं भेजा जा सकता? चलिए कोई मामले में नहीं भेजा जा सकता क्या कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है कि अगर किसी के बाहर रहने से नागरिकों की सुरक्षा को ख़तरा है तो प्रिवेंशन के तहत उसे जेल भेजा सकता है? मुज़फ्फरपुर में बिना टोल टैक्स भरे पूरा काफिला निकल गया, क्या ये पूछताछ करने लायक भी मामला नहीं बनता? नीतीश जी किसे मूर्ख बना रहे हैं आप? ठीक है कि आपने और आपके बड़े भैया ने बिहार को बीसवीं सदी में ही रोक रखा है, जिसके पास न रोटी है, न रोजगार है, न शिक्षा है, न समझ है, न सोच है, बस जाति की राजनीति है, लेकिन ये क्यों भूल जाते हैं कि ये इक्कीसवीं सदी है। हैरत मुझे नीतीश या लालू या बिहार की जनता पर नहीं है, हैरत है वामपंथी विचारकों पर, जो शहाबुद्दीन की रिहाई पर भी गेस्ट अपीयरेंस की तरह कलम चलाकर कट लिए! भले ही केरल-बंगाल और जेएनयू छोड़कर इस विचारधारा का कहीं अता-पता नहीं है, लेकिन यही कामरेड हर दिन संघी-मोदी-भाजपा का राग अलापकर खुद को ज़िंदा तो रखे हुए हैं ही। जेएनयू में छात्रसंघ चुनाव के नतीजों को देश का मूड तक बता डालने वाले मेरे मित्रों, अपने कामरेड चंद्रशेखर को तो याद कर लेते? देश के किसी कोने में किसी दलित की पिटाई हो जाए तो वो मुद्दा है क्योंकि मोदी को घेरना है, बदबू गुजरात की जैसे अभियान को हवा दी जाती है, लेकिन खुलेआम तेज़ाब स्नान कराने वाले की रिहाई पर आपको सड़ चुके सुशासन और तेज़ाब में जल चुके मानव शरीरों की बदबू नहीं महसूस हो रही! कुछ मुस्लिम मित्रों की प्रतिक्रियाएं देखीं, उनकी नज़र में जो लोग शहाबुद्दीन की रिहाई का विरोध कर रहे हैं, वो 'भक्त' हैं! क्या कहेंगे इन्हें? कौन समझा जा सकता है इन्हें? तभी तो इनकी नीयति यही है, इनकी सोच सड़ चुकी है और इसी वजह से बिहार सड़ चुका है। खैर, मिलते हैं फिर, आपका दिन शुभ हो
12 सितंबर को मेरे फेसबुक प्रोफाइल https://www.facebook.com/paramendra.mohan पर पोस्ट इस अंक पर 611 लाइक्स, 343 शेयर्स और 22 कमेंट्स आए थे।
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