Friday, September 23, 2016

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_4

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_4
#सुप्रभात..सबसे पहले सभी मित्रों का आभार, जिन्होंने कल की मेरी पोस्ट सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_3 को 521 लाइक्स, 314 शेयर्स और 20 कमेंट्स दिए। इसी सीरीज़ के पहले पार्ट पर 71 लाइक्स, 11 शेयर्स और 13 कमेंट्स और दूसरे पर 67 लाइक्स, 13 शेयर्स और 8 कमेंट्स आए थे। ये अप्रत्याशित है क्योंकि मेरे फ्रेंडलिस्ट में कुल जमा 653 मित्र हैं, जिनमें से मुश्किल से 100-50 सक्रिय हैं। सवाल ये कि अचानक इतने लोगों की प्रतिक्रिया क्यों मिली? जवाब ये कि ये उस आक्रोश की अभिव्यक्ति है, जो एक दुर्दांत अपराधी को खुलेआम दिए जा रहे सत्ता संरक्षण के ख़िलाफ़ उभरी है। लालू यादव अगर मुख्यमंत्री होते तो न किसी को शहाबुद्दीन की रिहाई पर आश्चर्य होता, न किसी को गुस्सा आता क्योंकि तब ये स्वाभाविक माना जाता, लेकिन गुस्सा इसीलिए है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश हैं। बिहार में पिछले साल विधानसभा चुनाव हुए थे, ये अंदेशा जताया गया था कि अगर लालू-नीतीश की सरकार बनी तो बिहार फिर से 2005 की स्थिति में लौट सकता है। नीतीश जी..आपको याद है न आपने बिहार की जनता को भरोसा दिया था कि जंगलराज की वापसी नहीं होगी, मैं हूं ना। आज नीतीश जी ईमानदारी से बताएं कि वो कहां हैं? वो अगर हैं तो फिर शहाबुद्दीन क्यों खुलेआम घूम रहा है? यही सवाल मैं उन तमाम मीडिया मित्रों और मोदी विरोधी बुद्धिजीवियों से भी पूछता हूं-2015 के नवंबर में आप लोगों ने बिहार में महागठबंधन की जीत का जमकर जश्न मनाया था कि दिल्ली के बाद बिहार ने मोदी का विजयरथ रोक दिया, अब बिहार का विकासरथ थमा हुआ है और अपराधरथ कानूनराज को रौंद रहा है, तो आइए आप सबको निमंत्रण है पैरों से लाचार चंदा बाबू, लकवाग्रस्त चंदा बाबू की पत्नी और परिवार में एकमात्र बचे विकलांग बेटे का..आइए सांस लेती इन ज़िंदा लाशों के साथ सुशासन का जश्न मनाएं..तारीख बता दीजिए सीवान पहुंचने का! एक वरिष्ठ पत्रकार सलाह दे रहे हैं कि और भी बड़े मुद्दे हैं, उनपर क्यों नहीं बात हो रही है? एक और वरिष्ठ पत्रकार कह रहे हैं कि शहाबुद्दीन सबको चाहिए सवाल ये है कि किसको कितना चाहिए? मैं अदना सा आम श्रमजीवी पत्रकार सिर्फ ये पूछ रहा हूं कि शहाबुद्दीन का मामला क्यों छोड़ देना चाहिए? इसलिए क्योंकि वो लालूजी का ख़ास है और लालूजी नमो के ख़िलाफ़ बुलंद आवाज़ हैं? या इसलिए क्योंकि नीतीश जी ने किसी जमाने में बिहार में सुशासन कायम किया था तो उन्हें सुशासन के खात्मे का भी अधिकार है? क्यों बिहार में तीन दिन से राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है? शहाबुद्दीन कहते हैं कि परिस्थितियों का सीएम हैं नीतीश, मधु कोड़ा हैं नीतीश, शराबबंदी पर काला कानून हैं नीतीश..रघुवंश कह रहे हैं कि नीतीश को कभी नेता माना ही नहीं, सबसे बड़ा दल राजद है तो नीतीश तो हालात के सीएम हैं ही। नीतीश के लोग शहाबुद्दीन को कह रहे हैं कि इंजेक्शन लगा देंगे और रघुवंश को कह रहे कि आउटडेटेड हैं। रघुवंश लालू से कह रहे कि देखिए नीतीश मीटिंग बुलवाकर गाली दिलवा रहे और नीतीश लालू से कह रहे कि देखिए आपके आदमी हमें बेइज्जत कर रहे, मुंह बंद करवाइए और जेलयाफ्ता लालू इंसाफ का फैसला कर रहे कि शहाबुद्दीन ने गलत कहां कहा? यही तो कहा कि लालूजी असली नेता हैं, इससे नीतीश जी को क्या बुरा लग सकता है! यूपी में नीतीश जोर-शोर से चुनाव लड़ रहे हैं, बनारस से शुरू हुए और मुलायम-माया सबको लपेटे जा रहे, कल लालू बीच में टपके और सीधे ऐलान कर दिए कि लड़ाई तो मुलायम और भाजपा के बीच है और उनका समर्थन मुलायम को है और जीत तो मुलायम की ही होगी। लगे हाथों ये भी कि राहुल गांधी तो जोकर हैं और उनको कुछ आता ही नहीं है। एक साथ नीतीश और कांग्रेस दोनों पर हमले का मतलब समझिए..जदयू के 71 विधायक हैं, नीतीश कमज़ोर-बेबस हैं, एक तिहाई विधायकों के टूटने का ख़तरा मंडरा रहा है, जिस दिन राजद ने ये टूट पक्की कर ली, उसी दिन तक नीतीश सीएम हैं। नीतीश अब अलग-थलग हैं तो इसलिए क्योंकि उन्हें जनता का समर्थन था, जो उन्होंने खो दिया है। राजनीतिक दोस्ती तो उनकी सिर्फ अवसरवादिता की ही रही है। नीतीश किसी के नहीं हैं, ये हर कोई जानता है, पहले कांग्रेस के खिलाफ जेपी के साथ थे, फिर जेपी के सिद्धांतों को छोड़कर कांग्रेस के साथ हो लिए, कभी लालू के साथ थे, फिर लालू को छोड़कर बीजेपी के हो लिए, कभी बीजेपी के साथ थे, अब लालू-कांग्रेस के साथ हो लिए। अब रंगा सियार वाली हालत है, लालू भाव नहीं दे रहे और बीजेपी भरोसा नहीं कर पा रही..हमारे जैसे नीतीश समर्थक परेशान हैं कि जिस लालूराज को हटाने के लिए 1990 से विकासवादी ताकतों ने लड़ाई लड़ी, वही एक बार फिर बिहार के सीने पर मूंग दल रहा है और इसके पीछे है सिर्फ औऱ सिर्फ नीतीश की सत्ता लोलुपता। लालू से जिस दोस्ती को नीतीश मास्टरस्ट्रोक मानकर देश में लागू करने चले थे, वही उनका ब्लंडर बन चुका है। खैर..मिलते हैं फिर, आप सभी को ईद-उल-अजहा की मुबारकबाद, आस्था से जुड़ा है फिर भी एक आग्रह है कि कृपया इस पाक दिन पर किसी निरीह की हत्या न करें..हम हिंदुओं में भी पहले भैंसे की कुर्बानी देते थे, अब नहीं देते, आप भी ऐसा कर सकते हैं। मैं खुद शाकाहारी हूं, इसलिए ये अपील कर रहा, मुस्लिम मित्र इसका बुरा न मानें और जो लोग खुद मांसाहारी हैं, वो बकरे की हत्या पर हायतौबा मचाने से बाज आएं, उन्हें ये हक नहीं है। दिन शुभ हो।

मेरे फेसबुक प्रोफाइल पर 13 सितंबर को पोस्ट इस आलेख पर 549 Likes, 130 shares और 20 कमेंट्स आए थे।

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