Friday, September 23, 2016

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_5


मेरे फेसबुक प्रोफाइल https://www.facebook.com/paramendra.mohan पर 16 सितंबर को पोस्ट इस अंक पर 200 Likes, 17 shares और 25 comments आए थे। इस सीरीज़ में मेरे पांच पोस्ट थे और खास बात ये कि उस वक्त 653 फ्रेंड्स ही फ्रेंड्सलिस्ट में थे। फेसबुक पर पुरानी पोस्ट मिलती नहीं, इसलिए मशहूर ब्लॉगर और मेरे पत्रकार मित्र खुशदीप सहगल जी की सलाह पर मैंने एक बार फिर से अपने इस ब्लॉग को इसके सहारे सक्रिय करने की कोशिश की है।

#सुशासन_का_जनाजा_पार्ट_5 सभी साथियों को बधाई। मजबूरी में ही सही नीतीश कुमार जी देर आयद-दुरुस्त आयद। जैसी बत्ती लगी थी, होना यही था। शहाबुद्दीन जैसे अपराधी को राजद ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाकर और लालू यादव जी ने अपना वरदहस्त रखकर जिस तरह से वीवीआईपी बना रखा है, उसको दरकिनार करके उसकी जमानत रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में नीतीश सरकार को पहुंचना पड़ा, ये बड़ी बात है। वैसे खुद न भी आते, तो भी घसीट लिए जाते क्योंकि तीन अर्जियां एक साथ सुप्रीम कोर्ट में आई हैं और शहाबुद्दीन ‘साहेब’ की बोलती बंद है। अब हम काहे के लिए नीतीश जी की पोल खोलें कि अगर अकेली उनकी याचिका आती तो फिर लालूजी हरकाते कि निकालें का हम सुशासन? अब नीतीश जी डबल गेम खेल सकते हैं। लालू जी से कहेंगे कि देखिए बड़का भैया, अगर हम सुप्रीम कोर्ट न जाते तो सुप्रीमे कोर्ट हमको नोटिस भेज देता काहे कि चंदा बाबू की तरफ से प्रशांत भूषणवा त पहुंचिए न गया है। दूसरा वो जनता को ये कहेंगे कि देखिए पटना हाईकोर्ट छोड़ा था, हम तो सुप्रीम कोरट चले गए, आप तो जानते ही हैं कि हम सुशासन कायम किए हैं, अपराधी को पाताल से भी खींच लाते हैं। फिर बिहार की प्रबुद्ध जनता ताली पीटेगी और सुशासन बाबू के जयकारे लगाएगी। खैर, जो तीन अर्जी आई है, उसमें पहली अर्जी चंदा बाबू की है, जिसमें जमानत रद्द कर तुरंत जेल भेजने की मांग की गई है। अब चंदा बाबू की पहचान बताने की तो ज़रूरत है नहीं, एक आम आदमी, जिसके तीन बेटे सुशासन की बलि चढ़ चुके हैं। दूसरी अर्जी बिहार सरकार की है, जिसमें शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करने की अर्जी है और तीसरी याचिका हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार दिवंगत राजदेव रंजन की विधवा आशा रंजन की है, जिनके पति की हत्या के आरोपी की तस्वीर बिहार सरकार के नंबर 3 मंत्री तेजप्रताप यादव के साथ सुशोभित हो रही हैं और कैफ नाम का ये शूटर शहाबुद्दीन का करीबी है, ये सच्चाई लाख पर्दे में भी नहीं छिप पा रही है। नीतीश जी बस इतना ख्याल रखिएगा कि राजद के जिस दबाव में आकर आपने और आपकी सरकार ने हाईकोर्ट में जिस तरह कमज़ोर पैरवी कराई, उसकी पुनरावृत्ति सुप्रीम कोर्ट में मत कीजिएगा।नीतीश कुमार कभी अपने फैसले खुद लेते थे, कई बार अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने का फैसला भी बिना दूसरों की राय के ले लिया करते हैं, ये अलग बात है कि लालूजी से दोस्ती के बाद उनकी इस स्वाभाविक प्रवृति में बदलाव आ गया है, तभी तो बेचारे को बार-बार इतिहास याद दिलाना पड़ता है कि देखिए हमने कैसे अपराधों पर काबू करके सुशासन कायम किया था। अब खुलकर ये भी नहीं कह पाते क्योंकि जिसके कुशासन को खत्म कर सुशासन कायम किया था, उसी के रहमोकरम पर सरकार है और वो सीएम हैं। शहाबुद्दीन को जमानत एक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा इसलिए बना क्योंकि ये सिर्फ सुशासन के जेल जाने और अपराधराज के जेल से बाहर आने तक सीमित नहीं था, ये इसलिए भी बना क्योंकि इस प्रकरण ने ये साबित कर दिया था कि कैसे लालू यादव जैसे एक जेलयाफ्ता नेता ने पर्दे के पीछे से जनादेश के नाम पर नीतीश कुमार नाम के मुख्यमंत्री को कठपुतली बनाकर रख दिया है। बिहार की जनता और मुझ जैसे लोग राजनीतिक प्रतिबद्धताओं में फेरबदल और निष्ठा परिवर्तन को ख़ास तवज्जो नहीं देते क्योंकि ये राजनीति में न पहली बार हुआ है और न आखिरी बार होगा, राजनीति में सत्ता के लिए समझौते होते रहते हैं, लेकिन सत्ता के लिए राजनीतिक समझौता तक तो ठीक है, अपराधियों से समझौता अनुचित। इसी गलत कदम के खिलाफ हम सबने नीतीश जी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। भगवान आपको सदबुद्धि दे और उन लोगों को भी थोड़ा सा बुद्धि दे, जो मंत्री-विधायक-कार्यकर्ता-ढोल-नगाड़े के साथ 300 गाड़ियों का काफिला लेकर बिहार में विजय यात्रा निकाल रहे थे। हालांकि अदालती मामला है, पता नहीं कब ‘साहेब’ अपने असली घर जाएंगे, लेकिन बत्ती तो लग ही गई है!!


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