पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए और राजस्थान और मिजोरम को छोड़ दें तो बाक़ी तीनों मुख्यमंत्री नॉट आउट ही रहे। ये जनादेश कई साफ संकेत दे रहे हैं। पहला ये कि बढ़िया काम करो तो जनता महज बदलाव के लिए अब बदलाव के मूड में नहीं दिखती। दूसरा ये कि जनता अब राष्ट्रीय मुद्दों पर शायद संसदीय चुनाव के लिए ही सोचना चाहती है और राज्यों के चुनाव में उसे राज्यों से जुड़े मुद्दों और नीतियों से ही सरोकार है। शायद यही वजह है कि दिल्ली और राजस्थान में आतंकवाद, महंगाई, मंदी जैसे मुद्दे उठाना बीजेपी पर ही भारी पड़ गए। तीसरा ये भी कि नेताओं के बहकावे में अब लोग नहीं आ रहे। दिल्ली की ओखला सीट से कांग्रेस का जीतना इसका सबूत है। यहां हुए बाटला हाउस एनकाउंटर को समाजवादी पार्टी ने भुनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वोटरों ने उसे पांचवें नंबर पर धकेल दिया। चौथा ये कि विकल्प मजबूत होना चाहिए क्योंकि सिर्फ पार्टी के नाम पर लोग संतुष्ट नहीं हो रहे। और पांचवां ये कि भले ही अब बीएसपी यूपी से निकलकर दूसरे राज्यों में भी जड़ जमा रही है, लेकिन लोग त्रिशंकु जनादेश की बजाय साफ फैसला कर पसंदगी-नापसंदगी जाहिर करने के गुर सीख रहे हैं। खैर, अगली लड़ाई तो अगले साल होगी..क्योंकि मुद्दे भी अलग होंगे और मतदाताओं की सोच भी...तब तक सेमीफाइनल के नतीज़ों पर राजनीतिक दलों को मंथन करने और अगली रणनीति तय करने का पूरा मौक़ा है।
परम
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1 comment:
जनादेश को नेता भी समझे और बाकी जनता भी। वक्त सब बातों से ऊपर उठकर देश हत में सोचने का ज़रूर है। ये बात उन लोगों के लिए है जो खुद तो पहल करते नही, ज़िम्मेदारी लेते नहीं बस दूसरों को उनकी ज़िम्मेदारियां समझाते रहते हैं। अब समाजवादी पार्टी को लीजिए। बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए खूब राजनीति की गई। पैसा तक दिया गया। लेकिन कोई इन लोगों से पूछे कि अगर आप सत्ता में होते तो उस समय आप क्या करते। ये भारत का दुर्भाग्य ही है कि राजनीति ये ये तथाकथित मठाधीश अमरसिंह सरीखे थाली के बैंगन की तरह है, जहां वोट मिलने की उम्मीद दिखी वहीं लुढक गए। वो सिर्फ राजनीति करना जानते है। ये अच्छी बात है कि देश जाग रहा है। बेसिक दिक्कतों को समझ रहे हैं लोग। देशहित के लिए समय निकाल रहे है। अगर जमता अपने इलाके के हर एख उम्मीदवार के काम का लेखा जोखा लेकर समझदारी से वोट करें तो तस्वीर और ज्यादा निखार सकती है। यही नहीं इससे उन युवाओं की दिलचस्ती बढेगी जो अभी तक खुद को राजनीति से दूर रखते आए हैं। वो युवा जो आगे की सोचते है, आगे बढ़ना चाहते है। उम्मीद है जो विधानसभा चुनावों में देखने को मिला लोकसभा चुनावों में ये परंपरा आगे बढेगी। जनादेश आगे बढेगा।
भावना मल्होत्रा
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