Thursday, December 25, 2008

..हमाम में सब नंगे

..आजतक में कार्यरत गिरिजेश भाई ने यूपी में इंजीनियर की हत्या को महज एक वारदात के नजरिये से देखने के, एक बड़े कैनवस में रखकर देखा है..एक बेहद संजीदा और गंभीर मामले पर पढ़िए, गिरिजेश जी की बेबाक प्रतिक्रिया....

नेताओं, अभियंताओं और ठेकेदारों के गठजोड़ ने खासकर उत्तर प्रदेश में जो तंत्र खड़ा कर रखा है, उसमें मनोज गुप्ता जैसे लोगों की बलि चढ़ती ही रहेगी। सवाल किसी एक एमएलए के रंगदारी वसूलने या फिर किसी एक अभियंता की हत्या का नहीं है। सवाल उस सिस्टम का है, जिसे लालची ठेकेदारों और भ्रष्ट मशीनरी ने पैदा किया और सिरे पनाह देने की कीमत वसूलने के लिए नेता का चोला ओढ़े गुंडे आ धमके..। मनोज गुप्ता की दर्दनाक हत्या की ख़बर मिली, तो मुझे कुछ साल पहले की वो घटना याद आ गई, जब यूपी के इंजीनियर एसोसिएशन ने तबके पीडब्ल्यूडी मंत्री पर उगाही का आरोप लगाया था..। सिर्फ ज़ुबानी नहीं, बल्कि बाकायदा चिट्ठी लिखकर। हुआ क्या? मंत्री जी सदन में रोते रहे और नेता दलगत राजनीति भूलकर उनके आंसू पोंछने में जुट गए। जांच का तमाशा भी हुआ, लेकिन क्या किसी को याद है कि उस जांच का नतीजा क्या निकला? क्या किसी ने ईमानदारी से ये पता लगाने की कोशिश की कि इंजीनियर एसोसिएशन ने मंत्री पर इतना संगीन इल्ज़ाम क्यों लगाया? यूपी में पीडब्ल्यूडी के कामकाज की मामूली समझ रखने वाले को भी मालूम है कि यहां वर्क ऑर्डर के नाम पर कैसा खेल चलता है? दफ्तर में कदम रखने वाले छोटे से छोटे ठेकेदार को भी मालूम है कि बिना नज़राना दिए ना तो ठेका पास होगा और ना ही पेमेंट का चेक बनेगा? हो सकता है कि ये सिर्फ झूठा दुष्प्रचार हो, लेकिन ज़रा गौर से सोचिए कि क्या कोई विधायक किसी इंजीनियर से दस लाख रुपये का 'चंदा' यूं ही मांगने लगेगा? क्या एमएलए को मालूम नहीं कि एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर की सैलरी कितनी होती है? और क्या कोई एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर अपनी सैलरी से इतने पैसे बचा सकता है कि वो दस लाख रुपये चंदा देने की हैसियत रखता हो? मुझे दिवंगत इंजीनियर के परिवार से पूरी सहानुभूति है, लेकिन अपने साथी की मौत से नाराज़ इंजीनियर एसोसिएशन के ओहदेदारों के पास क्या है कोई जवाब कि आखिर उन्होंने अपने सदस्यों की छवि पर लगने वाले दाग़ मिटाने के लिए कोई पहल क्यों नहीं की? क्यों बना ली ऐसी छवि कि हर कोई ये समझने लगा है कि पीडब्ल्यूडी महकमा तो दुधारू गाय है और इस महकमे के मुलाज़िम इस गाय को दूह-दूहकर मलाई काट रहे हैं। ये कड़वी सच्चाई सबको पता है कि पीडब्ल्यूडी के करोड़ों रुपये के ठेकों में लाखों रुपये का कमीशन फिक्स होता है..। कमीशन की इसी मोटी मलाई में हिस्सेदारी की चाहत रखने वालों की भीड़ बढ़ रही है। मनोज गुप्ता उसी भीड़ की चाहत का शिकार हो गए। डर इस बात का है कि एक बलि लेकर भी ये प्यास नहीं बुझेगी, क्योंकि इस बार भी घटना की जड़ काटने की बजाय असली मुद्दे को जड़ से काट देने की राजनीति शुरू हो चुकी है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे कि इंजीनियर एसोसिएशन के खुले आरोप पत्र के बाद हुई थी..।
गिरिजेश मिश्र

2 comments:

फ़्र्स्ट्रू said...

नंगे तो सब ही हैं, लेकिन मैडम का नंगा नाच कुछ ज्यादा ही वीभत्स हो गया इस बार.

Sanjay Sinha said...

ये प्रतिक्रिया सचमुच पूरे सिस्टम को हिला देने वाली है। लेकिन यही सोचता हूं कि काश ये सच न होता! लेकिन मेरे सोचने या न सोचने से क्या होगा...जो सच है वही सच है। बस देखना ये है कि कितने घरों से इस तरह लाशें उठती रहेंगीं। गिरिजेश जी ने जो लिखा वो धड़कते दिल की धड़कन को थाम देने के लिए काफी है..

एक प्रशंसक