Friday, December 19, 2008

..कहां हो तुम?

हमने ज़माने को देखा ही नहीं,
उनकी नज़रे इनायत पाने के लिए..
उन्होंने हमें तन्हा छोड़ दिया,
उसी ज़माने में किस्मत आजमाने के लिए...

जो बिछड़े तो ये सोचा कि बिछड़े हैं
कभी फिर से मिल जाने के लिए...
अब हुआ अहसास कि हम तो बिछड़ गए
ताउम्र बिछड़ जाने के लिए...

जब से जुदा हुए जिये जा रहे हैं हम
रिश्ता-ए-ज़िंदगी निभाने के लिए...
दिल बेताब है अपने प्यार का वही प्यार,
एक बार फिर से पाने के लिए...

उन्हें तो फुर्सत ही नहीं,
हमें भूले से भी याद फरमाने के लिए...
हम ही अकेले रह गए हैं,
वफ़ा-ए-दोस्ती निभाने के लिए...

एक बार तो मिल लो कभी,
कि मिल जाए हमें बहाना मर जाने के लिए..
फिर इत्मीनान से भूल जाना हमें,
किसी और बहाने के लिए...
आपका
परम

4 comments:

Vinay said...

अच्छा शब्द जादू चलाते हैं

hem pandey said...

पूरी दुनियाँ में उन्हें शायद
हम ही मिले , सताने के लिए.

DEEPAK NARESH said...

सर जी, मुबारकबाद.. इस बात के लिए कि चलो इसी बहाने उस कलम ने सफर शुरू तो किया जिसके चलने का हमें बेसब्री से इंतजार था...

प्रशांत मलिक said...

एक बार तो मिल लो कभी,
कि मिल जाए हमें बहाना मर जाने के लिए..
फिर इत्मीनान से भूल जाना हमें,
किसी और बहाने के लिए...

esa kyun?