Wednesday, December 10, 2008

..मिसाल या मसाला?

ईद के दिन फिज़ा में चांद दिखा...मुबारक। चांद भी खिला हुआ है और फिज़ा भी महक रही है...मुबारक़। नई ज़िंदगी की शुरुआत पर फिज़ा जी को ख़ास तौर पर मुबारकबाद देनी चाहिए और ये दुआ भी कि उनके चांद को कोई दूसरा चांद नज़र न आए क्योंकि उन्होंने उसे अपना बनाया है, जो अपनी पत्नी और बच्चों का भी अपना नहीं बन पाया। ऐसे में उनकी आगे की ज़िंदगी में शायद दुआओं के सहारे की ज़्यादा ज़रूरत पड़े। आखिर उन्होंने ये मिसाल भी तो साबित की है कि प्यार झुकता नहीं, दिल दीवाना होता है वगैरह-वगैरह। और ये मिसाल आगे भी तो साबित हो सकती है, क्योंकि दिल तो आखिर दिल है और ये भी सच है कि जो मजहब उन्होंने अपने इश्क को अंजाम देने के मकसद से अपनाया है, उसमें तो अभी दिल के अरमान को अंजाम तक पहुंचाने के और मुकाम भी बाक़ी हैं। किसी की निजी ज़िंदगी और निजी फ़ैसलों पर किसी गैर को टिप्पणी करने का हक़ नहीं बनता, लेकिन चर्चा हर जगह छिड़ी है कि उन्होंने जो किया, वो ठीक किया या गलत किया..बहस धर्मगुरुओं में भी छिड़ी है, जो हरियाणा के बर्खास्त उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन के धर्म बदल कर चांद मोहम्मद बनने और प्रेमिका अनुराधा यानी फिज़ा से दूसरी शादी करने को जायज या नाजायज ठहरा रहे हैं। शुक्र है चांद की पहली पत्नी एक रसूखदार और सम्पन्न परिवार की हैं वर्ना घर चलाने और बच्चों का भविष्य बनाने की दुश्वारियां उनकी परेशानी और बढ़ा देतीं। ये अलग बात है कि अगर बड़े नाम नहीं जुड़े होते तब शायद हम इस ख़बर या बहस से भी बच जाते। जो भी हो ब्लॉगर्स बंधुओं और पाठकों आपका क्या मानना है?
आपका
परम

1 comment:

Girijesh Mishra said...

भाई परमेंद्र जी, ये मिसाल नहीं, मसाला ही है...और मसाला भी ऐसा कि सूंघते ही छींक आने लगे। मेरी जान-पहचान के ही कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने फिज़ा के चांद की ख़बर सूंघने के बाद लगातार छींकना शुरू कर दिया है। दो-चार सवालों की बानगी देख लीजिए, माज़रा समझ जाएंगे।
एक सज्जन जानना चाह रहे थे कि क्या किसी भी आदमी के लिए चांद बनकर अपनी पसंद की फिजा बना लेने की छूट है, या फिर इसके लिए नेता होने की ख़ास योग्यता भी ज़रूरी है? एक दूसरे सज्जन की जिज्ञासा थी कि चांद की फिज़ा अंतिम सत्य है, या फिर फिज़ा बदलने की गुंजाइश भी है? वैसे भी चांद ने कानून के ग्रहण से बचने के लिए ऐसा इंतज़ाम किया है कि अब आगे कोर्ट-कचहरी का झंझट ही ना रहे..। बस एक जुमले को तीन बार दोहराना है और दूसरी फिज़ा का रास्ता साफ़? ये मसालेदार सवाल हैं, लेकिन मिसाल ढूंढने वालों के लिए इन मसालों में भी मसलों की कमी नहीं..। प्यार के परदे में जाने क्या कुछ छिपा है, लेकिन ये सवाल तो परदे से बाहर आ ही गया है कि अरेंज्ड मैरिज करके 18 साल तक जिसके साथ रहे, तीन बार संतान सुख भोगा, उस पर तोहमत जड़ दिया कि उससे विचार मेल नहीं खा रहे थे। भाई विचारवान, लगे हाथ ये भी बता देते कि बिना विचार मिले 18 साल तक निबाहा कैसे? कहीं विचारों की कसक ये जानने के बाद तो नहीं जागी कि पिताजी ने हिस्से की प्रॉपर्टी बीवी-बच्चों के नाम कर दी है? चांद को लगता है कि उसकी फिजा से नाखुश लोगों की तादाद बस दस फीसदी के आस-पास ही है..। अब ये भी बता देते कि इसमें आधी आबादी शुमार है या नहीं..। कम से कम आधी आबादी से ये तो पूछ लेते कि 18 साल तक बिना विचार मिले उनके साथ गृहस्थी चलाने वाला अगर अचानक वैचारिक आज़ादी मांगने लगे और चांद बन जाए, तो क्या होगा? मुझे इस मसाले में इसी खतरनाक मिसाल की गंध मिली है और तभी से छींक आ रही है।
गिरिजेश मिश्र