फिर मैंने उनसे मांगा वक्त और फिर दिल हुआ बेज़ार
उन्होंने कहा फिर कभी, और लंबा हुआ इंतज़ार..
अब करता हूं अफसोस कि क्यों उनसे मांगा वक्त,
बड़े बेवक्त पर इस बार भी वो कर गए इनकार...
गर बस चले इस दिल का तो ये थाम लेता वक्त,
एक वक्त था जब, उनके पास था मेरे लिए भी वक्त
हर शाम का था साथ और कट जाता था वो वक्त,
अब यादों में ही सिमट गया गुजरा सुहाना वक्त..
मेरे लिए अब पास उनके वाकई नहीं है वक्त,
वक्त ने ही तो बदल दिया उनका पुराना वक्त,
पर मानता नहीं है मेरा दिल ये कमबख्त,
और मांग बैठता है उनसे अब भी थोड़ा वक्त...
अब वक्त से है इल्तिजा...मेरा भी आए वक्त,
लौटा दो वही दोस्त, कभी वो भी आए वक्त...
(माफी के साथ चूंकि ये कविता थोड़े से बदलाव के साथ मैंने दीपक नरेश जी के ब्लॉग पर उनके कहने पर लिखी थी..औऱ माफी उनसे भी, जिनके लिए ये कविता लिखी थी..पाठक इससे तो सहमत होंगे ही कि बिना प्रेरणा के कविता लिखी ही नहीं जा सकती..)
आपका
परम
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