..यूपी में मारे गए पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर मनोज गुप्ता की ही हत्या के मामले को आगे बढ़ाते हैं। वो इसलिए कि गिरिजेश जी की प्रतिक्रिया पर जिस तरह से संजीदा प्रतिक्रिया मिल रही हैं, उसपर बहस ज़रूरी है। संजय सिन्हा जी ने भी लिखा है कि (चूंकि उन्होंने एक प्रशंसक के तौर पर अपना विचार दिया है, इसलिए चाहते हुए भी उनका परिचय देना ठीक नहीं होगा).. काश जो हक़ीक़त गिरिजेश जी ने बताई है, वो हक़ीक़त नहीं होती। लेकिन, हक़ीक़त तो ये है ही...अब देखिए ना..पोस्टमार्टम रिपोर्ट..मनोज गुप्ता के सिर पर इतने वार किए गए कि खोपड़ी की हड्डी ही टूट गई और जान चली गई। इतना ही नहीं, बिजली के तेज़ झटके उन्हें दिए गए। यानी हत्यारों ने गुप्ता को मारने के साथ-साथ दूसरे इंजीनियरों को भी ये संदेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि दबंग विधायक को रंगदारी न होने का अंजाम कितना भयावह हो सकता है। और जहां तक पुलिस का सवाल है, दबंगई के आगे वो किस तरह नतमस्तक हो गई इसका अंदाज़ा तो इसी से लग जाता है कि जानबूझकर केस को इतना कमजोर बनाया कि पुलिस रिमांड पर भी शेखर तिवारी को नहीं लिया जा सका और कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में भेज दिया। अगले दिन गैंगस्टर एक्ट लगाया गया। अब सियासी दबाव में अगर कुछ ठोस हो तो हो वर्ना तिवारी तो फंसने से रहे..ख़ैर। गिरिजेश जी ने यूपी के पीडब्ल्यूडी में ठेका मिलने से लेकर पेमेंट चेक बनने तक फैली कमीशनखोरी और घूसखोरी का जो ब्यौरा दिया, उस पर भी कुछ होना चाहिए। पता चला कि गुप्ता जी के बेटे ने यूपी सरकार से मिला मुआवजा लेने से इनकार कर दिया। एक साथी की प्रतिक्रिया थी..अगर वाकई सैलरी पर परिवार चल रहा होता तो ज़रूर मुआवज़ा ले लेते क्योंकि परिवार के मुखिया की मौत के बाद घर चलाना आसान नहीं..अब इस बारे में ज़्यादा कहना उचित नहीं होगा क्योंकि जो नहीं रहे,और जिनके बारे में कोई ठोस सबूत नहीं हो, उनके बारे में आरोप उचित नहीं हैं। लेकिन, तमाम इंजीनियर या बाबू कितने ईमानदार हैं, इस बारे में शायद कहने की ज़रूरत भी न पड़े। ज़रा सोचिए..आखिर कबतक चलेगा ऐसा..और ये भी कि इक़बाल कासकर ने आखिर दाऊद इब्राहिम की भांजी की शादी के लिए भी तो नहीं की चंदा उगाही..27 को मुंबई के डोंगरी इलाके में नूरबाग हॉल की सजावट बयां कर रही है कि खर्चा बड़ा किया गया है..लेकिन, इस बारे में बात बाद में..
आपका
परम
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