Friday, December 12, 2008

..नाकामी की बरसी

सात साल पहले आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर को ही संसद पर हमला किया गया था। उससे पहले के आतंकवादी हमले या वारदात छुप-छुपाकर, बम प्लांट करके किए जाते थे। लेकिन, पहली बार आतंकवादियों ने खुली चुनौती देते हुए क़हर बरपाने के मंसूबों से संसद परिसर में घुसकर फायरिंग की थी। जवानों ने शहादत देकर आतंकियों को ढ़ेर किया, और उन नेताओं की जान बचाई, जिनकी नाकामियों का सिला एक बार फिर और उसी तरह के हमले में मुंबई को भुगतना पड़ा। दोनों ही बार आतंकवादी पाकिस्तानी थे, दोनों ही बार आतंकियों का सामना बिल्कुल आमने-सामने हुआ, दोनों ही बार जांबाजों को शहादत देनी पड़ी और दोनों ही बार भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त तेवर अपनाए। लेकिन, जो चीज दूसरी बार नहीं होनी चाहिए वो है एक और हमला...पाकिस्तान ने संसद पर हमले के बाद भी आतंकवाद को शह देना जारी रखा, लेकिन हम पड़ोसी से दोस्ती का राग अलापते रहे। भूल गए संसद पर हमले से मिला देश के दिल पर ज़ख्म का दर्द...लेकिन, अब जब जख्मों को फिर से कुरेदा गया है तो नहीं भूलना चाहिए..वैसे किस पर और कैसे यकीन किया जाए। अक्षरधाम, वाराणसी, अहमदाबाद, हैदराबाद, जयपुर, दिल्ली तमाम जगहों पर हुए धमाकों की गूंज और मारे गए लोगों की चीख भी सियासी बयानबाज़ी में दबाई जाती रही है। कोई सिमी पर प्रतिबंध हटाने की वकालत करता है तो कोई वोट के लिए अफजल जैसे आतंकवादी को जब तक हो सके ज़िंदा रखने की कोशिश करता है। कोई आतंकवादी को बाक़ायदा प्लेन में बैठाकर कंधार तक पहुंचाने जाता है तो कोई अपनी बेटी को बचाने के लिए आतंकवादी को छुड़वाता है। और कोई आतंकवादियों को बेकसूर ठहराने और शहादत पर सवाल उठाने से भी बाज़ नहीं आता। हां, शुक्र है इस बार संसद में हुई बहस में सरकार ने चूक मानी है, अगले कदम के ऐलान किए हैं और विपक्ष ने भी हम सब एक हैं का नारा बुलंद किया है। शायद तवा गर्म है, इसलिए कोई उंगली जलाना नहीं चाहता...कुछ दिन बाद चुनाव आते ही कहां का आतंक और कौन सी नीति पर वापस भी लौट सकते हैं आखिर गिरगिट को रंग बदलते वक्त ही कितना लगता है?
आपका
परम

1 comment:

शंभुनाथ said...

13 तारीख को मैं दिल्ली से बाहर था, इसलिए मैं देख नहीं पाया इस पोस्ट को,

आतंक पर बार-बार आर-पार की लड़ाई का दावा किया जाता है। पाकिस्तान से 20 आतंकियों को भारत को सोंपने के लिए बार-बार कहा जाता है।

आतंकवादी विरोधी मोर्चे के एम एस बिट्टा का कहना है कि हम आखिर उन 20 आतंकवादियों को लेकर आखिर करेगे क्या ? संसद पर हमले का गुनहग़ार अफजल आज तक फांसी दिए जाने पर भी 7 साल से वोटबैंक की राजनीति का मोहरा बना हुआ है। मान लो यदि पाकिस्तान हमें 20 के 20 आतंकवादी सौंप भी दे तो हम उनका आखिर करेगे क्या ? हम उन्हें सजा दे सकते नहीं ? हमें इंतजार करना पड़ेगा फिर से कि कोई हमारा जहाज अगवा करे,हम 20 के 20 आतंकी सौदेबाजी के तहत उन्हें सौपें....क्या इसी तरह हम आतंक से लड़ेंगे....??????

शंभुनाथ