Thursday, December 18, 2008

..अंतुले का क्या हो?

हद हो गई, आतंकवाद पर सियासत के ख़िलाफ़ आम लोगों का गुस्सा इतनी जल्दी भूल गए अंतुले साहब..दरअसल वो कहना तो ये चाहते थे कि मुंबई एटीएस चीफ हेमंत करकरे चूंकि मालेगांव धमाकों की तफ्तीश के दौरान हिंदू आतंकवाद को सामने लाने में अहम किरदार निभा रहे थे, लिहाजा उनकी मौत के पीछे पाकिस्तानी आतंकवादियों के अलावा भी किसी का हाथ हो सकता है। साफ शब्दों में वो ये कह रहे थे कि हो सकता है कि करकरे की हत्या तथाकथित हिंदू संगठन ने कराई। अब अंतुले साहब को शहीद करकरे के साथ ही शहादत देने वाले सालस्कर और मुंबई पुलिस के शहीद एसीपी का नाम क्यों नहीं सूझा, ये तो वही जानते होंगे। दरअसल, अंतुले साहब कुंठित हैं। कुंठित कांग्रेस में अपनी अनदेखी से हैं। कुंठित मीडिया में तवज्जो नहीं मिलने से हैं। वो मज़हबी हवा देकर सियासी आग भड़काना चाहते हैं, ताकि रोटियां सेंक सकें। अब शर्म-लिहाज से उन्हें क्या लेना-देना..ऐसा भी नहीं है कि वो अपनी बात से पूरी तरह पलट रहे हैं। वो तो अड़े हैं, जानते हैं कि पलट गए तो उस गेम का क्या होगा, जिसे सोचकर ये बयान दिया। लेकिन, उनकी पार्टी परेशान है। वो देख चुकी है आतंकवाद पर सियासत करने से हालिया विधानसभा चुनावों में बीजेपी का हाल...वो भांप रही है जनता की नब्ज़। लेकिन, सवाल ये है कि अंतुले जैसे नेताओं का आखिर क्या किया जाए?

5 comments:

विष्णु बैरागी said...

पूछने की क्‍या बात है भला । निकाल फेंकिए ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जिस नेता के हाथ सिमेंट स्केंडल से रंगे हो, जिस व्यक्ति की श्रवण शक्ति और स्मरण शक्ति क्षीण हो गई हो, उसे देश का नेता बनाया जाय तो और क्या परिणाम हो सकता है। बोवई बेर का पेड और आम की कामना करें तो मूरख कौन है?

Pramendra Pratap Singh said...

कुछ न कहो, कुछ भी न कहो,
जो कहना था वो कह दिया।
वोट की खतिर सब कुछ कर गया :)
महाशक्ति

शंभुनाथ said...

ये अंतुले जैसे लोगों के दिमागी दिवालिएपन की आखिरी सीढ़ी है। दरअसल ये अंतुले जैसे लोगों की बुद्धि का अंत है...

Anonymous said...

अंतुले को तो...खैर छोड़िए

विषय सही उठाया आपने