मनमोहन सिंह ने साफ कर दिया कि भारत पाकिस्तान से युद्ध नहीं चाहता..कुछ लोग कह रहे हैं भारत डर गया..कुछ कह रहे हैं कि पाकिस्तान पर कार्रवाई के लिए दुनिया पर दबाव डालने की कोशिशें बाउंस बैक हो गईं..पहले प्रणब मुखर्जी हर दिन कह रहे थे कि भारत के पास सभी विकल्प खुले हैं तो अब एक विकल्प तो बंद हो गया और पाकिस्तान को दूसरे विकल्पों की बहुत ज़्यादा फिक्र हो, ऐसा कम-से-कम अभी तो नहीं दिख रहा। इसमें किसी को शक नहीं कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं हो सकता, ये भी ठीक है कि मंदी के इस दौर में युद्ध से हालात और ख़राब होंगे। लेकिन, ये सवाल भी बरकरार है कि आखिर पाकिस्तान से कैसे निपटे भारत? अमेरिकी सरकार के नुमाइंदों का ये हाल है कि वो भारत आकर भारत की तरह और पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान की तरह बयान देते हैं। सबसे बड़े लोकतंत्र की दुहाई देकर भारत को स्वाभाविक दोस्त बताते हैं तो आतंकवाद के खिलाफ जंग में पाकिस्तान की भूमिका के लिए उसकी पीठ थपथपाते हैं। खुद पर जब बनी तो अफगानिस्तान और इराक तक को रौंद दिया और भारत की बात आती है तो संयम की नसीहत दे देते हैं। समस्या वहीं की वहीं है..दूसरों से अपने ज़ख्म सहलवाने की आदत भूलकर इसकी दवा खुद तलाशनी है। कूटनीतिक कोशिशें जारी रहें, जारी रहनी भी चाहिए..खुद को इतना मजबूत बनाया जाए ताकि आतंकवादी हमले फिर ना हो सकें..इसमें भी कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए..लेकिन साथ ही लाचारी, बेबसी इतनी भी ना हो कि तमाम सबूत होते हुए भी हम कुछ ना कर सकें। पाकिस्तान को आखिर कैसे मिले सबक और कौन सिखाए सबक..इस सवाल का जवाब तलाशना ही होगा क्योंकि ये सवाल अब देश के सम्मान का भी है।
आपका
परम
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1 comment:
हमें सबसे पहले ख़ुद चौकन्ना होने की ज़रूरत है और रही अमेरीका की बात तो अमेरिका तो स्वार्थी है अपने स्वार्थ को किसी को भी गले लगा लेता है। लेकिन आतंकवादी देश पर हमला एक देश को नहीं बल्कि सभी देशों को करना होगा फिर देखिए आतंक जड़ से ही मिट जाएगा। लेकिन हमला एक साथ और सही जगह हो तो ?
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