हम जश्न के मूड में हैं। नए साल का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे हैं। एक और साल को हराकर जीतने का जश्न मनाने की तैयारी क्योंकि हम हमेशा जीतते हैं, कभी हारते नहीं। जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए,सबकी जीत हुई। बुलेट पर बैलेट की जीत, आतंक पर लोकतंत्र की जीत, जम्हूरियत की जीत और फिर जम्हूरियत की जीत पर जश्न मना। जीत उसकी भी हुई, जिसने अमरनाथ जमीन के धार्मिक मसले को सियासी बनाकर खुद की ताकत एक से ग्यारह कर ली। जीत उसकी भी हुई, जिसने अलगाववादियों के मुजफ्फराबाद कूच को सियासी शाबासी देकर अपनी सीटें बढ़ा ली। जीत उसकी भी, जिसकी सरकार ने पूरा बवाल खड़ा कर दिया, फिर भी नई सरकार में शामिल हो गए। और जीत उसकी भी, जिसके वोट सात फीसदी वोट कट गए, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनी की बनी रह गई। जीत परिवारवाद की भी, जिसने अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढी को भी सीएम की गद्दी दिला दी। और जब इतनी सारी जीत एक साथ हुई हो तो जम्हूरियत की जीत का जश्न लाजिमी भी तो है। इसमें किसी को भी शक नहीं होना चाहिए क्योंकि घाटी में 61 फीसदी वोटिंग वाकई में काफी उत्साह बढ़ाने वाला है। लोग सोचने पर मजबूर हो गए कि आखिर क्या हुआ आतंकवादियों को, कहां सो गए अलगाववादी, लेकिन बाद में फारूक ने ये जाहिर किया कि अलगाववादी इस बार चुनाव प्रक्रिया को बाधित नहीं करने के बारे में कह चुके थे और पाकिस्तान भी खामोश था। वैसे, कश्मीर से पहले जीत का जश्न हम मुंबई में भी मना रहे थे। ये जीत थी, अपने घर में पाकिस्तान से घुस आए दस आतंकियों में से नौ को मार गिराने की, जिन्होंने 183 लोगों को मार डाला था। लेकिन, अपनी खुफिया नाकामियों, सुरक्षा नाकामियों को भूलकर हमने जज्बे की जीत का जश्न मनाया। आज भी हम सात साल पहले संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों को मार गिराने की घटना को जांबाजों की जांबाजी की जीत कहकर मनाते हैं। वैसे जीत हमारे संस्कार में भी है...हम मातम मनाने में यकीन नहीं करते, मातम भूलाने में ज़्यादा यकीन करते हैं। याद नहीं आपको, पिता की अस्थियां घर में रखी थीं, और बेटा ड्रग्स और दारू के साथ मातम मनाते मनाते अस्पताल पहुंच गया था। तो हम क्यों मनाएं मातम, क्यों मनाएं हार का गम..हम जीतते आए हैं तो जीत का जश्न ही मनाएंगे। जय हो जीत की..जश्न हो जीत का...
आपका
परम
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1 comment:
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज
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