Monday, December 8, 2008

..सैलाब के सामने

बड़े आराम से मैं किनारे-किनारे चला जा रहा था,
तभी देखा सैलाब मेरी ओर ही चला आ रहा था,
मन ने कहा-चल भाग ले..कि तेरे चाहने वालों को है ज़रूरत तेरी,
मैं न भागा क्योंकि सैलाब में वो जाना-पहचाना चेहरा नज़र आ रहा था..

पास आकर मेरे सामने एक पल के लिए ठिठका पानी,
आई आवाज़..मुझसे ही दिल लगा बैठे..परम अज्ञानी..
मैंने पूछा-हम जैसे इंसान सिर्फ ख्वाब ही तो बनाते हैं,
और उन्हीं ख्वाबों को तुम क्यों साथ बहा ले जाते हो?
आई आवाज़..बस यही बताने को कि मत बना ख्वाब,
क्योंकि यूं ही और अक्सर ये ख्वाब टूट जाते हैं..

मैंने कहा-ख्वाब के साथ इंसान भी टूट जाते हैं,
मुझे क्यों बख्शते हो, क्यों नहीं साथ ले जाते हो?
आई आवाज़..ज़िंदगी साथ जाती है मेरे, बन लाश लौट आती है..
तू तो अब यूं भी एक लाश है..जा मौत तूझे ज़िंदगी लौटाती है

न जाने फिर सैलाब के पीछे-पीछे कब तलक चला जा रहा था..
कभी तो फिर से देखूं उसे, जिसमें वो चेहरा नज़र आ रहा था
परम

9 comments:

Meher Nutrition said...

You wrote one very good thing that every body wants to say something. But listeners are very less. Congratulation you write very nicley.
Dr. Chandrajiit Singh
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Unknown said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें, मेरी शुभकामनायें… एक अर्ज है कि कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें, टिप्पणी करने में बाधक बनता है… धन्यवाद्।

bijnior district said...

हिंदी के लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे। अच्छा लिखे । नाम कमाएं। हार्दिक शुभकामनायें। कृपया सैटिंग मे जाकर वर्ड वैरिफिकेशन हटा दें।

Prakash Badal said...

स्वागत्

Girijesh Mishra said...

परमेंद्र जी, पहले तो लगा था कि आपने बस शुरुआत के लिए शुरुआत की है, लेकिन आपने तो सिलसिला ही शुरू कर दिया और वो भी शानदार सोच और जानदार शब्दों से भरा हुआ..। अब संकट में हूं कि अपनी उंगलियों को कंप्यूटर की-बोर्ड पर खटपट करने से कैसे रोकूं? इसलिए आपको शुभकामनाओं से शुरुआत कर रहा हूं। सिलसिला जारी रहेगा। बगल में बैठे सलिल (खली वाले) नमस्ते लिखने को बोल रहे हैं। यकीन है कि इस संदेश के साथ वो भी पहुंच जाएगा और लौटती डाक से आशीर्वाद आएगा, तो उसे ठिकाने तक पहुंचाने की गारंटी..।
(मेरी बात अभी जारी है..) लिखने के लिए दिमाग कुलबुलाएगा या फिर उंगलियां कसमसाएंगी, तो आपका ये साइबर मंच रात-बिरात कब्ज़ा लिया करूंगा..। इसे गुजारिश समझ लीजिए, या फिर गोरखपुरिया अंदाज़....

गिरिजेश मिश्र

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर रचना, शब्दों का सुंदर संसार
स्वागत है आपका ब्लगजगत में

shama said...

Sasneh swagat hai...aur mere blogpe aaneka nimantranbhi..aasha hai anugruhit karenge..
Rachana achhee hai aur samayke saath harek rachna nikharteehee jayegi...wo qabiliyat aap rakhte hain..

संगीता पुरी said...

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

प्रवीण त्रिवेदी said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में प्रवेश करने पर आप बधाई के पात्र हैं / आशा है की आप किसी न किसी रूप में मातृभाषा हिन्दी की श्री-वृद्धि में अपना योगदान करते रहेंगे!!!
इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए!!!!
स्वागतम्!
लिखिए, खूब लिखिए!!!!!


प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें